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क) पालि और प्राकृत . प्राकृत.के अनेक प्रकारों में ‘पालि' भाषा भी प्राकृत भाषा का ही एक प्राचीन रूप है। क्योंकि पालि भाषा की जो विशेषतायें हैं, उनमें अधिकांश प्राकृत भाषा के तत्त्व हैं। परन्तु भगवान तथागत के वचन जिस भाषा में संगृहीत किये गये, उसका प्राकृत भाषाओं से वैशिष्ट्य प्रदर्शित करने के लिए अलग, पालि भाषा नामकरण किया गया; क्योंकि पालि का निर्वचन भी पा रक्षणे धातु से ‘पाति बुद्धवचनानि या सा पालिः', अर्थात् बुद्ध के वचनों की जो रक्षा करती है, उसे ‘पालि' कहते हैं।
डॉ. भरत सिंह उपाध्याय ने ‘पालि साहित्य के इतिहास' (पृ. १) में लिखा है कि पालि भाषा बुद्ध के उपदेशों और तत्सम्बन्धी साहित्य तक ही सीमित हो गयी थी। इस रूढ़िता के कारण पालि भाषा से आगे चलकर अन्य भाषाओं का विकास नहीं हुआ, जबकि प्राकृत की सन्तति निरन्तर बढ़ती रही। किन्तु पालि का साहित्य पर्याप्त समृद्ध है।
यह पालि भाषा भी भारत तथा अन्य दूसरे देशों में समादृत होने पर भी यह भाषा मुख्यतः बौद्ध धर्म के मानने वालों की ही भाषा रही। इसी कारण पालि से सिंहली को छोड़कर अन्य भाषाओं का विकास नहीं हो सका, जबकि प्राकृत भाषा से अनेक भाषायें विकसित होने से यह अनेक भाषाओं की जननी और सर्वमान्य भाषा रही है। इसी प्रकार अर्धमागधी प्राकृत को मुख्यतः जैनधर्म की श्वेताम्बर परम्परा ने अपनी भाषा स्वीकृत किया और अपने धर्मग्रन्थों की रचना इसी भाषा में की। ख) पालि-प्राकृत में समानतायें
पालि एवं प्राकृत भाषाओं में अनेक समानतायें हैं। जैसे -
१. दोनों भाषाओं का ध्वनि समूह समान है। ____२. दोनों में ऋ, ऋ, लु, ऐ का लोप हो जाता है।
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