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________________ इसीलिए महाकवि भास, कालिदास, भवभूति, हस्तिमल्ल जैसे अनेक उत्कृष्ट संस्कृत नाटककारों ने अपने नाटकों में प्राकृत भाषा बोलने वाले पात्रों से उनकी पात्रता के आधार पर विविध प्राकृत सम्वादों को बड़ी ही सहजता और सम्मान के साथ प्रस्तुत किया। जहाँ महाकवि हस्तिमल्ल के नाटकों में विशेषकर 'विक्रान्त कौरवम्' नाटक में प्राकृत के जितने बड़े-बड़े सम्वाद हैं, वहीं महाकवि शूद्रक के मृच्छकटिकम् नाटक में तो विभिन्न प्राकृतभाषी पात्रों की बहुलता का उत्कृष्ट सामंजस्य है। ग) मृच्छकटिकं नाटक में प्राकृतों का प्रयोग-वैशिष्ट्य इस नाटक की लोकप्रियता और श्रेष्ठता का रहस्य भी यही है। जितनी प्राकृत भाषाओं का प्रयोग यहां देखने को मिलता है उतनी अन्य किसी नाटक में नहीं। इसमें संस्कृत के अतिरिक्त सौरसेनी, अवन्तिका, प्राच्या और मागधी – इन चार प्राकृतों शाकारी, चाण्डाली और ढक्की - इन तीन अपभ्रंश भाषाओं का प्रयोग हुआ है। प्राकृत भाषाओं की प्रयोग की दृष्टि से इसमें सूत्रधार, नटी, रदनिका, मदनिका, वसन्तसेना, इसकी वृद्धा मां, नटी, धूता, कर्णपूरक, शोधनक और श्रेष्ठी – ये ग्यारह पात्र शौरसेनी बोलते हैं। वीरक और चन्दनक अवन्तिका बोलते हैं। विदूषक प्राच्या बोलता है। संवाहक (भिक्षु), तीनों चेट (स्थावरक, कुम्भीलक और वर्धमानक) तथा चारूदत्त का पुत्र रोहसेन - ये पाँच पात्र मागधी बोलते हैं। शकारी अपभ्रंश का प्रयोग ‘शकार' नामक पात्र ने तथा दशम अंक के दोनों चाण्डाल पात्र चाण्डाली भाषा एवं द्यूतकर और सभिक माथुर – ये दो पात्र ढक्की विभाषा (वनेचरों की भाषा) का प्रयोग करते हैं। पूर्वोक्त भाषाओं में शाकारी और चाण्डाली - ये अपभ्रंश भाषायें मागधी प्राकृत की विभाषायें तथा अवंतिका और प्राच्या – ये दो शौरसेनी की विभाषायें प्रतीत होती हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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