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________________ घ) नाटकों में प्राच्या और आवन्ती प्राकृत भाषायें प्राच्या और आवन्ती इन भाषाओं का प्रयोग नाटकों में दिखलाई देता है, मुख्यतः मृच्छकटिक नाटक में। इस सम्बन्ध में डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने प्राकृत साहित्य का इतिहास (पृ. ३२) में लिखा है कि नाट्यशास्त्र (१७५१) में विदूषक आदि की भाषा को प्राच्या कहा गया है। यहाँ नायिका और उसकी सखियों द्वारा शौरसेनी बोले जाने का उल्लेख है। किन्तु नाटकों में प्रयुक्त इन दोनों प्राकृतों के अध्ययन से पता लगता है कि इन पात्रों की भाषा में कोई वास्तविक अन्तर नहीं, केवल कुछ वाक्यों और शब्दों के प्रयोग ही भिन्न हैं। मार्कण्डेय ने प्राकृतसर्वस्व (१०.१) में शौरसेनी से ही प्राच्या का उद्भव बताया है। (प्राच्यासिद्धिः शौरसेन्याः)। उन्होंने अपने प्राकृतसर्वस्व के दसवें पाद में प्राच्या के जो लक्षण प्रस्तुत किये हैं उनमें और नाटकों में प्रयुक्त विदूषक द्वारा बोली जाने वाली शौरसेनी में कुछ खास अन्तर नहीं है। . अतः प्राच्या बोली को पूर्वीय शौरसेनी का ही रूप समझना चाहिये। पुरुषोत्तम के प्राकृतानुशासन (११.१) का अनुकरण करते हुए मार्कण्डेय ने भी प्राकृतसर्वस्व (११.१) में आवन्ती को महाराष्ट्री और शौरसेनी के बीच की संक्रमणकालीन अवस्था (आवन्ती स्यान् महाराष्ट्रीशौरसेन्योस्तु संकरात्) बताया है। ङ) नायिकाओं आदि अनेक पात्रों की प्रिय-भाषा कविकुलगुरु कालिदास के विश्वप्रसिद्ध नाटक अभिज्ञानशाकुन्तलम् की ऋषिकन्या शकुन्तला, नाटककार भास की राजकुमारी वासवदत्ता, शूद्रक कवि विरचित मृच्छकटिकम् की नगरवधू वसन्तसेना, भवभूति विरचित उत्तररामचरितम् की महासती सीता, जैन महाकवि हंस्तिमल्ल विरचित 'विक्रान्त कौरवम्' नाटक की राजकुमारी सुलोचना · तथा अन्य तपस्विनी नारियाँ, राजा के मित्र, कर्मचारी तथा अन्य प्रायः ४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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