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________________ प्राकृत शिलालेखों में जनभाषा का स्वरूप निदर्शन प्राकृत जन - भाषा के रूप में इतनी प्रतिष्ठित थी कि सम्राट अशोक के समय एक विशाल साम्राज्य की राज्यभाषा होने का गौरव प्राकृत भाषा को प्राप्त हुआ और उसकी यह प्रतिष्ठा हजारों वर्षों तक आगे बढ़ती रही । सम्राट अशोक ने (ई. पूर्व २७० - २५० के मध्य ) भारत के विभिन्न भागों में अभिलेखों में जो राज्यादेश प्रचारित किये उनके लिए उसने दो सशक्त माध्यमों को चुना। एक तो उसने अपने समय की जनभाषा प्राकृत एवं ब्राह्मी लिपि में इन अभिलेखों को तैयार कराया ताकि वे जन-जन तक पहुँच सकें और दूसरे इन्हें पत्थरों पर खुदवाया ताकि वे सदियों तक नैतिक मूल्यों के रूप में अहिंसा, सदाचार और समन्वय का सन्देश देते रहें। सम्राट अशोक के अभिलेखों की संख्या लगभग तीस है। इनमें मात्र शाहबाजगढ़ी एवं मनसेरा के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है, शेष सभी ब्राह्मी लिपि में प्राप्त हैं। ईसा पूर्व ३०० से लेकर ४०० ईस्वी तक इन सात सौ वर्षों में लगभग दो हजार अभिलेख प्राकृत भाषा में लिखे गये हैं । यह सामग्री केवल प्राकृत भाषा के ही विकास क्रम एवं महत्त्व के लिए उपयोगी नहीं है, अपितु भारतीय संस्कृति और इतिहास के लिए भी एक बहुमूल्य महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री (प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, आमुख पृ. ७) के अनुसार प्राकृत भाषा का जनता में प्रचार था, जनता इसका उपयोग करती थी; इसका सबसे बड़ा प्रमाण शिलालेख ही हैं। शिलालेखों, सिक्कों और राजाज्ञाओं में सर्वदा जनभाषा का व्यवहार किया गया है। अशोक ने धर्माज्ञाएँ प्राकृत में प्रचारित की थीं; उनके धर्म - शिलालेख शाहबाजगढ़ी (पेशावर जिला ), मंसेहरा (हजारा जिला ), गिरनार (जूनागढ़), सोपारा (थाना जिला ), कालसी (देहरादून), धौली (पुरी जिला), जौगढ़ (गंजाम जिला) और इरागुडी (निजाम रियासत) Jain Education International ११ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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