________________
अनेक क्षेत्रीय जनभाषाओं का एक बृहत् समूह है, जिसमें अनेक भाषायें समाहित हैं। यथा— मागधी, अर्ध-मागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, पैशाची, चूलिका पैशाची, शिलालेखी और अपभ्रंश आदि हैं।
बुद्ध वचनों की पालि भाषा भी एक प्रकार की प्राकृत भाषा ही है। ये सभी एक ही विकास-धारा की विभिन्न कड़ियाँ हैं, जिनमें भारतीय संस्कृति, समाज एवं लोक-परम्पराओं की विविध मान्यताओं के साथ ही भाषा तथा विचारों का समग्र इतिहास लिपिबद्ध है।
प्राकृत की सार्वभौमिकता एवं विविध विषयों का प्रतिपादन
प्राकृत किसी जाति या सम्प्रदाय विशेष या काल विशेष की भाषा नहीं है, अपितु इसका स्वरूप सदा से सार्वभौमिक रहा है। अपने प्रिय भारत जैसे विशाल देश के प्राणों में स्पन्दित होने वाली उन बोलियों के समूह से है, लगभग जो लगभग ईसा पूर्व की छठी शताब्दी से लेकर ईसा की चौदहवीं शताब्दी तक लगभग दो हजार वर्षों तक प्रतिष्ठित रही है।
कुछ. लोग तथागत भगवान् बुद्ध वचनों की पालि भाषा की भांति प्राकृत भाषा को मात्र जैन धार्मिक-साहित्य की भाषा कहकर अनदेखा कर देते हैं, किन्तु यह उनका दुराग्रह मात्र है। क्योंकि यदि प्राकृत भाषा मात्र जैनागम साहित्य तक ही सीमित होती तो उक्त कथन सत्य प्रतीत होता, किन्तु प्रायः सभी परम्पराओं के भारतीय मनीषियों द्वारा व्याकरण, रस, छन्द अलंकार, शब्दकोश, आयुर्वेद, योग, ज्योतिष, राजनीति, धर्म-दर्शन, गणित, भूगोल, खगोल, कथा- काव्य, चरितकाव्य, नाटक-सट्टक, नीति- सुभाषित, सौन्दर्य आदि विषयों में रचा गया विशाल साहित्य प्राकृत भाषाओं में उपलब्ध है।
प्राकृत भाषा में साहित्य सृजन का यह क्रम केवल भूतकाल तक ही सीमित नहीं रहा, अपितु वर्तमान काल में आज भी इसका सृजन अबाध गति से चल रहा है। वर्तमान युग में सृजित विविध विधाओं का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org