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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 55
दोष लगते हैं। उनके विषय में सूत्रकार कहते हैं कि कदाचित वहाँ अधिक खाया जाय अथवा पीया जाय और वमन हो अथवा अपच हो तो रोग होने की संभावना होती है। गृहपति के साथ, गृहपति की स्त्री के साथ, परिव्राजकों के साथ, परिव्राजिकाओं के साथ एकमेव हो जाने पर, मदिरा आदि पीने की परिस्थिति उत्पन्न होने पर ब्रह्मचर्य - भंग का भय रहता है। यह एक विशेष भयंकर दोष है।
भिक्षा के लिये जाते समय :- भिक्षा के लिये जाने वाले भिक्षु को कहा गया है कि अपने सब उपकरण साथ रखकर ही भिक्षा के लिए जाय। एक गाँव से दूसरे गाँव जाते समय भी वैसा ही करे। वर्तमान में एक गाँव से दूसरे गाँव जाते समय इस नियम का पालन किया जाता है किन्तु भिक्षा के लिए जाते समय वैसा नहीं किया जाता। धीरे - धीरे उपकरणों में वृद्धि होती गई । अतः भिक्षा के समय सब उपकरण साथ में नहीं रखने की नई प्रथा चली हो ऐसा शक्य है।
राजकूलों में :- आगे बताया गया है कि भिक्षु को क्षत्रियों अर्थात् राजाओं के कुलों में, कुराजाओं के कुलों में, राजभृत्यों के कुलों में, राजवंश के कुलों में भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए। इससे मालूम होता है कि कुछ राजा एवं राजवंश • लोग भिक्षुओं के साथ असद्व्यवहार करते होंगे अथवा उनके यहाँ का आहार संयम की साधना में विघ्नकर होता होगा।
किसी गाँव में निर्बल वृद्ध भिक्षुओं ने स्थिरवास कर रखा हो अथवा कुछ समय के लिए मासकल्पी भिक्षुओं ने निवास किया हुआ हो और वहाँ ग्रामानुग्राम विचरते हुए अन्य भिक्षु अतिथि के रूप में आये हों जिन्हें देखकर पहले से ही वहाँ रहे हुए भिक्षु यों कहे कि हे श्रमणों ! यह गाँव तो बहुत छोटा है अथवा घर-घर सूतक लगा हुआ है इसलिए आप लोग आस-पास के अमुक गाँव में भिक्षा के लिए जाइए। वहाँ हमारे अमुक सम्बन्धी रहते हैं। आपको उनके यहाँ से दूध, दही, मक्खन, घी, गुड़, तेल जलेबी, श्रीखण्ड, पूडी आदि सब कुछ मिलेगा। आपको जो पसन्द हो वह लें। खा-पीकर पात्र साफ कर फिर यहाँ आ जावें। सूत्रकार कहते
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