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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 53 ऐसा भोजन आ भी जाये तो उसमें से जीवजन्तु आदि निकाल कर विवेकपूर्वक उसका उपयोग करे। भोजन करने के लिये स्थान कैसा हो? उसके उत्तर में कहा गया है कि भिक्षु एकान्त स्थान ढूँढे अर्थात् एकान्त में जाकर किसी वाटिका, उपाश्रय अथवा शून्यगृह में किसी के न देखते हुए भोजन करे। वाटिका आदि कैसे हो? जिसमें बैठने की जगह अंडे न हों, अन्य जीवजन्तु न हों, अनाज के दाने अथवा फूल आदि के बीज न हों, हरे पत्ते आदि न पड़े हों, ओस न पड़ी हो, ठण्डा पानी न गिरा हो, काई न चिपकी हो, गीली मिट्टी न हो, मकड़ी के जाले न हो ऐसे निर्जीव स्थान में बैठकर भिक्षु भोजन करे। आहार, पानी आदि में अखाद्य अथवा अपेय पदार्थ के निकलने पर उसे ऐसे स्थान में फैंके जहा एकान्त हो अर्थात् किसी का आना-जाना न हो तथा जीवजन्तु आदि भी न हो । भिक्षा के हेतु अन्य मत के साधु अथवा गृहस्थ के साथ किसी के घर में प्रवेश न करे अथवा घर से बाहर न निकले क्योंकि वृत्तिकार के कथनानुसार अन्य तीर्थिकों के साथ प्रवेश करने व निकलने वाले भिक्षु को आध्यात्मिक व बाह्य हानि • होती है। इस नियम से एक बात यह फलित होती है कि उस जमाने में भी सम्प्रदाय-सम्प्रदाय के बीच परस्पर सद्भावना का अभाव था। आगे एक नियम यह है कि जो भोजन अन्य श्रमणों अर्थात् बौद्ध श्रमणों, तापसों, आजीविकों आदि के लिए अथवा अतिथियों, भिखारियों, वनीपकों आदि के लिये बनाया गया हो उसे जैन भिक्षु ग्रहण न करें इस नियम द्वारा अन्य भिक्षुओं अथवा श्रमणों को हानि न पहुँचाने की भावना व्यक्त होती है। इसी प्रकार जैन भिक्षुओं को नित्यपिण्ड, अग्रपिण्ड (भोजन का प्रथम भाग ) आदि देने वाले कुलों में से भिक्षा ग्रहण करने की मनाही की गई है। भिक्षा के योग्य कुल :- जिन कुलों में भिक्षु, भिक्षा के लिये जाते थे वे ये हैं :- उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, क्षत्रियकुल, इक्ष्वाकुकुल, हरिवंशकुल, अकुल गोष्ठों का कुल वेसिअकुल- वैश्यकुल, गंडागकुल- गाँव में घोषणा करने वाले नापितों का कुल, कोट्टागकुल - बढ़ईकुल, बुक्कस अथवा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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