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________________ 48 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा के सम्बन्ध में जो पाठ हैं उनमें कहीं भी वृत्तिकारनिर्दिष्ट जिनकल्प आदि भेदों का उल्लेख नहीं है, केवल भिक्षु की साधन सामग्री का निर्देश है। इसमें अचेलकता एवं सचेलकता का प्रतिपादन भिक्षु की अपनी परिस्थिति को दृष्टि में रखते हुए किया गया है। इस विषय में किसी प्रकार की अनिवार्यता को स्थान नहीं है। यह केवल आत्मबल व देहबल की तरतमता पर आधारित है। जिसका आत्मबल अथवा देहबल अपेक्षाकृत अल्प है उसे भी सूत्रकार ने साधना का पूरा अवसर दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि अचेलक, त्रिवस्त्रधारी, द्विवस्त्रधारी, एकवस्त्रधारी एवं केवल लज्जानिवारणार्थ वस्त्र का उपयोग करने वाला - ये सब भिक्षु समानरूप से आदरणीय हैं, इन सबके प्रति समानता का भाव रखना चाहिए। समत्तमेव समभिजाणिया। इनमें से अमुक प्रकार के मुनि उत्तम हैं अथवा श्रेष्ठ हैं एवं अमुक प्रकार के हीन हैं अथवा अधम हैं, ऐसा नहीं समझना चाहिए। यहाँ एक बात विशेष उल्लेखनीय है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में मुनियों के उपकरणों के सम्बन्ध में आने वाले समस्त उल्लेखों में कहीं भी मुहपत्ती नामक उपकरण का निर्देश नहीं है। उनमें केवल वस्त्र, पात्र, कंबल, पादपूंछन, अवग्रह तथा कटासन का नाम है : वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं ओग्गहं च कडासणं (2, 5), वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं (6, 2), वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा (8, 1) वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा (8, 2)। भगवतीसूत्र में तथा अन्य अंगसूत्रों में जहाँ-जहाँ दीक्षा लेने वालों का अधिकार आता है वहाँ-वहाँ रजोहरण तथा पात्र के सिवाय किसी अन्य उपकरण का उल्लेख नहीं दीखता है। यह हकीकत भी मुहपत्ती के सम्बन्ध में विवाद खड़ा करने वाली है। भगवती सूत्र में "गौतम मुँहपत्ती का प्रतिलेखन करते हैं।' इस प्रकार का उल्लेख आता है। इससे प्रतीत होता है कि आचारांग की रचना के समय मुँहपत्ती का भिक्षुओं के उपकरणों में समावेश न था किन्तु बाद में इसकी वृद्धि की गई। मुँहपत्ती के बांधने का उल्लेख तो कहीं दिखाई नहीं देता। संभव है बोलते समय अन्य पर थूक न गिरे तथा पुस्तक पर भी थूक न पड़े, इस दृष्टि से मुँहपत्ती का उपयोग प्रारम्भ हुआ हो। मुंह पर मुँहपत्ती बाँध रखने का रिवाज तो बहुत समय बाद ही चला है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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