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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया 49 महावर-चर्या :- आचारांग के उपधानश्रुत नामक नववें अध्ययन में भगवान महावीर का जो चरित्र दिया गया है वह भगवान् की जीवनचर्या का साक्षात् द्योतक है। उसमें कहीं भी अत्युक्ति नहीं हैं। उनके पास इंद्र, सूर्य आदि के आने की घटना का कहीं भी निर्देश नहीं है । इस अध्ययन में भगवान् के धर्म चक्र के प्रवर्तन अर्थात् उपदेश का स्पष्ट उल्लेख है। इसमें भगवान् की दीक्षा से लेकर निर्वाण तक की समग्र जीवन - घटना का उल्लेख है। भगवान् ने साधना की, वीतराग हुए, देशना दी अर्थात् उपदेश दिया और अन्त में " अभिनिव्वुडे" अर्थात् निर्वाण प्राप्त किया। इस अध्ययन में एक जगह ऐसा पाठ है : : अप्पं तिरियं पेहाए अप्पं पिट्टओ व पेहाए । अप्पं बुइए पडिभाणी पंथपेही चरे जयमाणे । अर्थात् भगवान् ध्यान करते समय तिरछा नहीं देखते अथवा कम देखते, पीछे नहीं देखते अथवा कम देखते, बोलते नहीं अथवा कम बोलते, उत्तर नहीं देते अथवा कम देते एवं मार्ग को ध्यानपूर्वक यतना से देखते हुए चलते। इस सहज चर्या का भगवान् के जन्मजात माने जाने वाले अवधिज्ञान के साथ विरोध होता देख चूर्णिकार इस प्रकार समाधान करते हैं कि भगवान् को आँख का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है। (क्योंकि वे छद्मावस्था में भी अपने अवधिज्ञान से बिना आँख के ही देख सकते हैं, जान सकते हैं) फिर भी शिष्यों को • समझाने के लिए इस प्रकार का उल्लेख आवश्यक है: "ण एतं भगवतो भवति, तहावि आयरियं धम्माणं सिस्साणं इति काउं अप्प तिरिय ।" (चूर्णि, पृ. 310 ) इस प्रकार चूर्णिकार ने भगवान महावीर से सम्बन्धित महिमावर्धक अतिशयोक्तियों को सुसंगत कराने के लिए मूलसूत्र के बिलकूल सीधे-सादे एवं सुगम वचनों को अपने ढंग से समझाने का अनेक स्थानों पर प्रयास किया है। पीछे के टीकाकारों ने भी एक या दूसरे ढंग से इसी पद्धति का अवलम्बन लिया है। यह तत्कालीन वातावरण एवं भक्ति का सूचक है। ललितविस्तर आदि बौद्ध ग्रन्थों में भी भगवान् बुद्ध के विषय में जैन ग्रन्थों के ही समान अनेक अतिशयोक्तिपूर्ण उल्लेख उपलब्ध हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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