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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 25
खूब सम्पत्ति है इसलिए तू यज्ञ कर। उस यज्ञ से सम्पत्ति प्राप्त कर ब्राह्मण धनाढ्य हुए। इस प्रकार लोलूप हुए ब्राह्मणों की तृष्णा अधिक बढ़ी और वे पुनः इक्ष्वाकु के पास गये व उसे समझाया। तब उसने यज्ञ में लाखों गायें मारी'' इत्यादि।
सुत्तनिपात के इस उल्लेख से प्राचीन ब्राह्मणों व पतित ब्राह्मणों का थोड़ा बहुत परिचय मिलता है। नियुक्तिकार ने पतित ब्राह्मणों को चित्रित की कोटि में रखते हुए उनकी धर्मविहीनता एवं जड़ता की ओर संकेत किया। - चतुर्वर्ण :- नियुक्तिकार कहते हैं कि पहले केवल एक मनुष्य जाति थी। बाद में भगवान ऋषभदेव के राज्यारूढ़ होने पर उसके दो विभाग हुए । बाद में शिल्प एवं वाणिज्य प्रारम्भ होने पर उसके तीन विभाग हुए तथा श्रावकधर्म की उत्पत्ति होने पर उसी के चार विभाग हो गये। इसप्रकार नियुक्ति की मूल गाथा में सामान्यतया मनुष्य जाति के चार विभागों का निर्देश किया गया है। उसमें किसी वर्ण विशेष का नामोल्लेख नहीं है। टीकाकार शीलांक ने वर्गों के विशेष नाम बताते हुए कहा है कि जो मनुष्य भगवान् के आश्रित थे वे "क्षत्रिय' कहलाये। अन्य सब “शूद्र" गिने गये। वे शोक एवं रोदनस्वभावयुक्त थे अतः “शूद्र" के रूप प्रसिद्ध हुए। बाद • में अग्नि की खोज होने पर जिन्होंने शिल्प एवं वाणिज्य अपनाया वे "वेश्य" कहलाये। बाद में जो लोग भगवान् के बताये हुए श्रावकधर्म का परमार्थतः पालन करने लगे एवं "मत हंनो","मत हनो" ऐसी घोषणा कर अहिंसाधर्म का उद्घोष " करने लगे वे "माहन" अर्थात् "ब्राह्मण" के रूप मे प्रसिद्ध हुए।
ऋग्वेद के पुरूष सूक्त में निर्दिष्ट चतुर्वर्ण की उत्पत्ति से यह क्रम बिलकुल भिन्न है। यहाँ सर्वप्रथम क्षत्रिय, फिर शूद्र, फिर वैश्य और अन्त में ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जबकि उक्त सूक्त में सर्वप्रथम ब्राह्मण, बाद में क्षत्रिय, उसके बाद वैश्य और अन्त में शुद्र की उत्पति बताई है। नियुक्तिकार ने ब्राह्मणोत्पत्ति का प्रसंग ध्यान में रखते हुए अन्य सात वर्णों एवं नौ वर्णान्तरों की उत्पत्ति का क्रम भी बताया है। इन सब वर्ण-वर्णान्तरों का समावेश उन्होंने स्थापनाब्रह्म में किया है।
इस सम्बन्ध में चूर्णिकार ने जो निरूपण किया है वह नियुक्तिकार से कुछ
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