________________
26 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
भिन्न मालूम पड़ता है। चूर्णि में बताया गया है कि भगवान ऋषभदेव के समय में जो राजा के आश्रित थे वे क्षत्रिय हुए तथा जो राजा के आश्रित न थे वे गृहपति कहलाये। बाद में अग्नि की खोज होने के उपरान्त उन गृहपतियों में से जो शिल्प तथा वाणिज्य करने वाले थे वे वैश्य हुए। भगवान् के प्रव्रज्या लेने व भरत का राज्याभिषेक होने के बाद भगवान् के उपदेश द्वारा श्रावकधर्म की उत्पत्ति होने के अनन्तर ब्राह्मण. उत्पन्न हुए। ये श्रावक धर्मप्रिय थे तथा "मा हणो मा हणो" रूप अहिंसा का उद्घोष करने वाले थे अतः लोगों ने उन्हें माहण -ब्राह्मण नाम दिया। ये ब्राह्मण भगवान् के आश्रित थे। जो भगवान के आश्रित न थे तथा किसी प्रकार का शिल्प आदि नहीं करते थे वे अश्रावक थे । वे शोकातुर व द्रोहस्वभावयुक्त होने के कारण शूद्र कहलाये। "शूद्र" शब्द के "शू" का अर्थ शोकस्वभावयुक्त एवं "द्र" का अर्थ द्रोहस्वभावयुक्त किया गया है। नियुक्तिकार ने चतुर्वर्ण का क्रम क्षत्रिय, शूद्र, वैश्य व ब्राह्मण - यह बताया है जबकि चूर्णकार के अनुसार यह क्रम क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण व शूद्र- इस प्रकार है । इस क्रम-परिवर्तन का कारण सम्भवतः वैदिक परम्परा का प्रभाव है।
सात वर्ण व नव वर्णान्तर :- नियुक्तिकार ने व तदनुसार चूर्णिकार तथा वृत्तिकार ने सात वर्णान्तरी की उत्पत्ति का जो क्रम बताया है वह इस प्रकार है :
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र ये चार मूल वर्ण हैं। इनमें से ब्राह्मण व क्षत्रियाणी के संयोग से उत्पन्न होनेवाला उत्तम क्षत्रिय, शुद्ध क्षत्रिय अथवा संकर क्षत्रिय कहलाता है। यह पंचम वर्ण है। क्षत्रिय व वैश्य -स्त्री के संयोग से उत्पन्न होने वाला उत्तम वैश्य, शुद्ध वैश्य अथवा संकर वैश्य कहलाता है। यह षष्ठ वर्ण है। इसी प्रकार वैश्य व शुद्ध के संयोग से उत्पन्न होने वाला उत्तम शुद्ध, शूद्र शूद्र अथवा संकर शूद्र रूप सप्तम वर्ण है। ये सात वर्ण हुए। शुद्ध ब्राह्मण व वैश्य स्त्री के संयोग से उत्पन्न होने वाला अंबष्ठ नामक प्रथम वर्णान्तर है। इसी प्रकार क्षत्रिय व शुद्र के संयोग से उग्र, ब्राह्मण व शुद्र के संयोग से निषाद अथवा पराशर, शुद्र व वैश्य - स्त्री के संयोग से अयोगव, वैश्य व क्षत्रियाणी के संयोग से क्षत्तृक, वैश्य व ब्राह्मणी के संयोग से वैदेह एवं शूद्र ब्राह्मणी के संयोग से चांडाल नामक अन्य आठ वर्णान्तरों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org