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________________ 4: अंग साहित्य मनन और मीमांसा 44 के सम्पूर्ण ईर्या अध्ययन का मूल विद्यमान है। धूत नामक छठे अध्ययन के पाँचवे उद्देशक के " आइक्खे विभए किट्टे वेयवी" इस वाक्य में द्वितीय श्रुतस्कन्धं के 'भाषाजात " अध्ययन का मूल है। इस प्रकार नवब्रह्मचर्यरूप प्रथम श्रुतस्कन्ध आचारचूलिकारूप द्वितीय श्रुतस्कन्ध का आधारस्तम्भ है। 44 प्रथम श्रुतस्कन्ध के उपधानश्रुत नामक नौवें अध्ययन के दो उद्देशकों में भगवान महावीर की चर्या का ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण वर्णन है। यह वर्णन जैनधर्म की भित्तिरूप आंतरिक एवं बाह्य अपरिग्रह की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्व का है। वैदिक परम्परा के हिंसारूप आलंभन का सर्वथा निषेध करने वाला एवं अहिंसा को ही धर्मरूप बताने वाला शस्त्रपरिज्ञा नामक प्रथम अध्ययन भी कम महत्त्व का नहीं है। इसमें हिसारूप स्नानादि शौचधर्म को चुनौती दी गई है। साथ ही वैदिक व बौद्ध परम्परा के मुनियों की हिंसारूप चर्या के विषय में भी स्थान-स्थान पर विवेचन किया गया है एवं "सर्व प्राणों का हनन करना चाहिए" इस प्रकार का कथन अनार्यों का है तथा " किसी भी प्राण का हनन नहीं करना चाहिए" इस प्रकार का कथन आर्यों का है, इस मत की पुष्टि की गई है। " अवरेण पुव्वं न सरंति एगे”,“तहागया उ" इत्यादि उल्लेखों द्वारा तथागत बुद्ध के मत का निर्देश किया गया है। " यतो वाचो निवर्तन्ते" जैसे उपनिषद् वाक्यों से मिलते-जुलते " सव्वे सरा नियट्टति, तक्का जत्थं न विज्जई" इत्यादि वाक्यों द्वारा आत्मा की अगोचरता बताई गई है । अचेलक - सर्वथा नग्न, एक वस्त्रधारी, द्विवस्त्रधारी तथा त्रिवस्त्रधारी भिक्षुओं की चर्या से सम्बन्धित महत्वपूर्ण उल्लेख प्रथम श्रुतस्कन्ध में उपलब्ध हैं। इन उल्लेखों में सचेलकता और अचेलकता की संगतिरूप सापेक्ष मर्यादा का प्रतिपादन है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में आने वाली सभी बातें जैनधर्म के इतिहास की दृष्टि से, जैनमुनियों की चर्या की दृष्टि से एवं समग्र जैनसंघ की अपरिग्रहात्मक व्यवस्था की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। अचेलकता व सचेलकता :- भगवान महावीर की उपस्थिति में अचेलकतासचेलकता का कोई विशेष विवाद न था । सुधर्मास्वामी के समय में भी अचेलक व सचेलक प्रथाओं की संगति थी। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में अचेलक अर्थात् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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