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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 3 पदसंख्या के विषय में उल्लेख आता है। सचेलक परम्परा के समवायांग तथा नन्दीसूत्र में बताया गया है कि आचारांग के दो श्रुतस्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं। इनमें पदसंख्या के विषय में भी उल्लेख मिलते हैं। आचारांग के दो श्रतुस्कन्धों में से प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम "ब्रह्मचर्य है। इसके नौ अध्ययन होने के कारण इसे "नवब्रह्मचर्य" कहा गया है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध प्रथम श्रुतस्कन्ध की चूलिकारूप है। इसका दूसरा नाम “आचाराग्र' भी है। वर्तमान में प्रचलित पद्धति के अनुसार इसे प्रथम श्रुतस्कन्ध का परिशिष्ट भी कह सकते हैं। राजवार्तिक आदि ग्रन्थों में आचारांग का जो विषय बताया गया है वह द्वितीय श्रुतस्कन्ध में अक्षरशः मिल जाता है। इस सम्बन्ध में नियुक्तिकार व वृत्तिकार कहते हैं कि स्थविर पुरूषों ने शिष्यों के हित की दृष्टि से आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के अप्रकट अर्थ को प्रकट करविभागशः स्पष्ट कर चूलिकारूप-आचाराग्ररूप द्वितीय श्रुतस्कन्ध की रचना की है। नवब्रह्मचर्य के प्रथम अध्ययन "शस्त्रपरिज्ञा" में समारंभ-समालंभ अथवा आरंभ-आलंभ अर्थात् हिंसा के त्यागरूप संयम के विषय में जो विचार सामान्य तौर पर रखे गये हैं, उन्हीं का यथोचित विभाग कर द्वितीय श्रुतस्कन्ध में पंच महाव्रतों एवं उनकी भावनाओं के साथ ही साथ संयम की एकविधता, द्विविधता आदि का व चातुर्यास, पंचयाम, रात्रिभोजनत्याग इत्यादि का परिचय दिया गया है। द्वितीय अध्ययन "लोकविजय के पाँचवे उद्देशक में आने वाले "सव्वामगंधे परिन्नाय निरामगंधे परिव्वए'' तथा "अदिस्समाणे कय-विक्कएसु" इन वाक्यों में एवं आठवें विमोक्ष अथवा विमोह नामक अध्ययन के द्वितीय उद्देश्क में आने वाले "से भिक्खू परक्कमेंज्ज वा चिट्ठेज्ज वा ........... सूसाणंसि वा रूक्खमूलसि वा.........." इस वाक्य में जो भिक्षुचर्या संक्षेप में बताई गई है उसे दृष्टि में रखते हुए द्वितीय श्रुतस्कन्ध में एकादश पिण्डेषणाओं का विस्तार से विचार किया गया है। इसी प्रकार द्वितीय अध्ययन के पंचम उद्देशक में निर्दिष्ट "वत्थं पडिग्गह कंबलं पायपुंछणं ओग्गहं च कडासणं' को मूलभूत मानते हुए वस्त्रंषणा, अवग्रहप्रतिमा, शय्या आदि का आचाराग्र में विवेचन किया गया है। पाँचवें अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक के "गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स" इस वाक्य में आचारचूलिका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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