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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 241
नौ माह तथा दसवें का छ: माह था। सभी ने गुणरत्नसंवर नामक तप करके एक मास की संलेखना धारण कर विपुलगिरि पर्वत से मृत्यु को प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर विमान में जन्म ग्रहण किया तथा वहां से अपनी आयु पूरी कर महाविदेह क्षेत्र से मोक्ष को प्राप्त करेंगे, ऐसा उल्लेख है।
तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन में धन्यकुमार की कठोरातिकठोर तपस्या का विस्तृत और रोमांचकारी वर्णन किया गया है। धन्यकुमार काकन्दी नगरी की भद्रा सार्थवाही का पुत्र था। भद्रा काकंदी के व्यापारियों की मुखिया है। उसके पास भवन, शय्यासन, यान-वाहन सोना-चांदी आदि धन विपुल मात्रा में थे। वह धनी और तेजस्वी स्त्री थी। वह व्यापार के लेन-देन के कार्य में अतिकुशल थी। उसने अपने पुत्र धन्यकुमार का पालन-पोषण बड़े ऊंचे स्तर से किया था। धन्य कुमार के माता-पिता ने शुभ तिथि, करण और मुहूर्त में अध्ययन के लिए उसे कालाचार्य के पास भेजा। कालाचार्य ने धन्यकुमार को गणित, शकुनिरूत (पक्षियों के शब्द) आदि बहत्तर कलाएँ सिखलायी। धन्यकुमार अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो गया। वह अश्वयुद्ध, गजयुद्ध, रथयुद्ध और बाहुयुद्ध में प्रवीण हो गया। युवावस्था को प्राप्त होने पर माता भद्रा ने उसके लिए बत्तीस भव्य प्रासाद बनवाकर उसका विवाह बत्तीस सुन्दर कन्याओं के साथ कर दिया। - कुछ दिन पश्चात् भगवान महावीर काकंदी नगरी में पधारे। वहां उनका धर्मोपदेश सुनकर धन्यकुमार के मन में वैराग्य भावना जागृत हो गयी और तदनुसार • उसने अपने विपुल धन, धान्य, पत्नी, राज्य आदि सबको छोड़कर मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली। वह ईर्यासमिति, भाषा समिति से युक्त यावत गुप्त ब्रह्मचारी बन गया। प्रव्रजित होने पर उन्होंने जीवन-पर्यन्त बेला तप के साथ आयंबिल पारणे से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण किया। मुनि काल में धन्य ने जो त्याग और तपस्या की, वह अद्भूत है। तपोमय जीवन का इतना सुन्दर एवं सर्वांगीण वर्णन श्रमण साहित्य में तो क्या पूरे भारतीय साहित्य में उपलब्ध नहीं होता। महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथ "कुमारसम्भव" महाकाव्य में पार्वती की तपस्या का जो वर्णन किया है, वह महत्त्वपूर्ण अवश्य है, फिर भी धन्य मुनि की तपस्या का वर्णन उससे भी विशिष्ट
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