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________________ 242 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा है। इसमें धन्य मुनि की तपस्या से उनकी जो शारीरिक दशा का वर्णन किया गया है, वह मन को रोमांचित कर देता है। तप करने से उनके दोनों पैर इस प्रकार सूख गये थे, जैसे सूखी हुई वृक्ष की छाल, लकड़ी की खड़ाऊं अथवा पुरानी सूखी हुई जूती हो। उनके पैरों में मांस और रक्त के नाम पर कुछ भी नहीं था केवल हड्डी, चमड़ा और नसें ही दिखायी देती थी। पैरों की अंगुलियां कलाय, कूंग या उड़द की उन फलियों के समान हो गयी थी जो कोमल-कोमल तोड़कर धूप में डाल दी गयी हो। तीव्रतर तप के प्रभाव से धन्य मुनि की जंघा रक्त-मांस के अभाव में काकजंघा नामक वनस्पति जो स्वभावतः शुष्क होती है- की नाल जैसी हो गयी। उसकी तुलना कंक और ढ़ंक नामक पक्षियों की जंघाओं से की गयी है। इसी प्रकार धन्य मुनि की ऊरू, कटि, उदर, पांसुलिका, पृष्ठ- प्रदेश और वक्षःस्थल, भुजा, हाथों की अंगुलियां, ग्रीवा, चिबुक, ओंठ, जिह्वा आदि सभी अंग-प्रत्यंगों का उपमाओं द्वारा वर्णन किया गया है। इस प्रकार धन्य अनगार कर्मनिर्जरा के अनन्य कारण तपश्चरण में इस प्रकार तन्मय हो गये कि वे अपने शरीर से भी निरपेक्ष हो गये । उनको शरीर का मोह लेशमात्र भी नहीं रह गया । सदेह होकर भी वे विदेह दशा को प्राप्त हो गये। उनकी कठोर और निर्लिप्त तपस्या की प्रशंसा भगवान महावीर ने स्वयं अपने मुख से श्रेणिक से की।” तत्पश्चात किसी रात्रि के मध्य भाग में धर्म जागरिका करते हुए उनके मन में शुष्क शरीरी होने की भावना जगी । वे स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर आरूढ़ होकर एक मास की संलेखना के द्वारा काल करके सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रुप में उत्पन्न हुए। तृतीय वर्ग के अन्य अध्ययन भी धन्यमुनि के समान ही संकेत कर दिये गये हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में वर्णित धन्यमुनि की तपस्या की तुलना बौद्ध साहित्य में वर्णित भगवान बुद्ध की तपस्या से की जा सकती है। बौद्ध परम्परा में मज्झिमनिकाय के बारहवें महासीहनाद सूत्र में भगवान बुद्ध की कठोर तपस्या का वर्णन किया गया है। धन्यकुमार ने कठोर देहदमन नौ मास तक किया था। उन्होंने दो-दो उपवास के बाद पारणे में आयंबिल करना (जिस में घी, दूध, तेल आदि रसप्रद चीजों का तथा अन्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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