________________
240: अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
वस्तुतः इन जैन-बौद्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि अभयकुमार और अभयराजकुमार दो अलग-अलग व्यक्ति रहे होंगे क्योंकि जैन दृष्टि से उसकी माता वणिक कन्या है, वह श्रेणिक का मंत्री है और भगवान महावीर के पास दीक्षा ग्रहण करता है, जबकि बौद्ध मतानुसार वह एक गणिका का पुत्र है, सफल रथिक है।2 निगण्ठ धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म को स्वीकार करता है, यदि अभय एक व्यक्ति होता तो महावीर और बुद्ध दोनों के पास कैसे दीक्षा ले सकता है? यह भी संभव है कि राजा श्रेणिक के अनेक पुत्र रहे हों, उनमें से एक का नाम अभय और दूसरे का अभयकुमार रहा हो।
द्वितीय वर्ग में जिन तेरह राजकुमारों का वर्णन है, वे सब श्रेणिक और धारिणी देवी के पुत्र थे। इन सबकी दीक्षा-पर्याय सोलह-सोलह वर्ष बतलायी गयी है। इनमें से दीर्घसेन ओर महासेन विजय नामक अनुत्तरविमान में, लष्टदन्त और गूढदन्त . वैजयन्त में, शुद्धदन्त और हल्ल जयन्त में, द्रुम और द्रुमसेन अपराजित में और शेष पांच सर्वार्थसिद्धि विमान में उत्पन्न हुए। इन सबने एक-एक मास की संलेखना की। इस वर्ग के सभी तेरह नायकों का वर्णन अति संक्षेप में करके शेष बातें जालिकुमार के समान इंगित कर दी गयी हैं।
तृतीय वर्ग में दस अध्ययन हैं। इनमें प्रथम धन्य नामक अध्ययन का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। दूसरे सुनक्षत्र आदि अध्ययनों को संक्षेप में निरूपित कर पहले धन्य अध्ययन, जालिकुमार या ज्ञाताधर्मकथा के पाँचवे अध्ययन में वर्णित थावच्चापुत्र की तरह इंगित कर दिया गया है।
तीसरे से दसवें अध्याय तक को एक साथ ही रखा गया है तथा इसमें भी केवल नाम निर्देश कर निक्षेप पद दे दिया गया है। शेष वर्णन के लिए सुनक्षत्र, स्कंदकमुनि, थावच्चापुत्र तथा धन्य अनगार का प्रसंग उदाहरण स्वरुप लिखा गया है। तीसरे वर्ग में जो विशेष बातें हैं वह यह कि धन्यकुमार और सुनक्षत्र काकन्दी में, ऋषिदास और पल्लक राजगृह में, राजपुत्र और चन्द्रिक साकेत नगरी में, पृष्टिमातृक और पेढालपुत्र वाणिज्यग्राम में, पोष्टिल्ल हस्तिनापुर में तथा वेहल्ल राजगृह में उत्पन्न हुए। इन दसों की माता भद्रा सार्थवाही थी। इसमें से प्रथम नो का दीक्षा-पर्याय
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org