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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 239
आगे नहीं आया तब उन्होंने द्रुमकमुनि के उपहास के लिए उन आलोचकों की भर्त्सना की तब वे लोग द्रुमक मुनि के महान तप से प्रभावित हुए। अभयकुमार ने आर्द्रककुमार को धर्मोपकरण उपहार में दिये। जिससे प्रभावित होकर वह श्रमण बना। अभयकुमार के संपर्क से ही राजगृह का कसाई कालशौकरिक का पुत्र सुलसकुमार भगवान का परम भक्त बना था। भगवान महावीर के मुख से अंतिम मोक्षगामी राजा के रुप में उदयन का नाम सुनकर अभयकुमार चिंतित हो गया कि यदि मैं राजा बन गया तो मोक्ष नहीं जा सकुँगा इसलिए कुमारावस्था में ही दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति पिता से मांगी। पिता ने कहा कि जिस दिन में क्रुद्ध होकर तुम्हें मुंह न दिखाने को कहूं उस दिन तू दीक्षा ग्रहण कर लेना। एक दिन रानी चेलना के चरित्र पर संदेह कर राजा ने अभयकुमार को महल जला देने का आदेश दिया। अभयकुमार ने रानी और बहुमूल्य वस्तुओं को महल से निकालकर रानी चेलना के महल में आग लगा दी। बाद में राजा श्रेणिक को पता चला कि चेलना पूर्ण पतिव्रता है तो पश्चाताप करता हुआ महल में लौटा, रास्ते में अभय कुमार मिला, पूछने पर उसने महल में आग लगाने की बात कह दी। इस पर क्रोधित होकर राजा ने उसे मुँह न दिखाने को कहा। इसी बात की प्रतीक्षा में रहने वाले अभयकुमार ने उसी दिन दीक्षा ग्रहण कर ली।
बौद्ध साहित्य में भी अभय राजकुमार का वर्णन प्राप्त होता है। बौद्ध साहित्य में अभय का पिता श्रेणिक तथा माता उज्जयिनी की गणिका पद्मावती है। अभय राजकुमार ने अपनी प्रकृष्ट प्रतिभा से सीमा विवाद को सुलझाया था जिससे प्रसन्न होकर बिम्बिसार ने एक सुन्दर नर्तकी उसे उपहार में प्रदान की। मज्झिमनिकाय के अभयकुमार सूत्र में निगण्ठ ज्ञातृपुत्र (महावीर) के कहने पर उसका बुद्ध से शास्त्रार्थ होने का उल्लेख है। वह बुद्ध से पूरण-काश्यप के मत से संबंधित एक प्रश्न करता है। धम्मपद अट्ठकथा के अनुसार जब अभयकुमार नर्तकी की मृत्यु से दुःखित होकर बुद्ध के पास गया और बुद्ध ने धर्मोपदेश दिया, तब उसे श्रोतापत्तिफल प्राप्त हुआ। थेरगाथा अट्ठकथा के अनुसार उसे श्रोतापत्तिफल तब प्राप्त हुआ जब बुद्ध ने वालच्छिगुलुपम सूत्र का उपदेश दिया।" पिता बिम्बिसार की मृत्यु से दुःखी होकर उसने बुद्ध के पास प्रव्रज्या ग्रहण की।
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