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________________ 238 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा अपराजित में तथा वारिषेण और दीर्घदन्त अनगार सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए। प्रस्तुत वर्ग में अभयकुमार का केवल नाम- निर्देश करके छोड़ दिया गया है परन्तु अभयकुमार के विषय में छठे अंग ज्ञाताधर्मकथा के प्रथम अध्ययन और अन्य ग्रंथों में विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। ___ अभयकुमार प्रबल प्रतिभा का धनी था। जैन और बौद्ध दोनों परम्परा उसे अपना अनुयायी मानती है। जैन आगम साहित्य के अनुसार वह भगवान महावीर के पास आहती दीक्षा स्वीकार करता है और त्रिपिटिक साहित्य के अनुसार बुद्ध के पास दीक्षित होता है। जैन साहित्य के अनुसार अभयकुमार श्रेणिक नन्दा रानी की पुत्र था। ज्ञाताधर्मकथा में वर्णित है कि अभयकुमार साम, दाम, दण्ड, भेद, उपप्रदान और व्यापार नीति में निष्णात थे। ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा और अर्थशास्त्र में : कुशल थे। वे चारों प्रकार की बुद्धियों के धनी थे। वे राजा के प्रत्येक कार्य के लिए सच्चे परामर्शक थे। वे राज्यधूरा को धारण करने वाले थे। वे राज्य (शासन) राष्ट्र (देश) कोष, कोठार (अभयभण्डार), सेना, वाहनं, नगर और अन्तःपुर की अच्छी तरह देखभाल करते थे। अभयकुमार श्रेणिक राजा के मनोनीत मंत्री थे। वे जटिल से जटिल समस्याओं को अपनी कुशाग्र बुद्धि से सुलझा देते थे। उन्होंने मेघकुमार की माता धारिणी और कुणिक की माता चेलना' का दोहद अपनी कुशाग्रबुद्धि से सम्पन्न किया। उन्होंने उपने पिता श्रेणिक का विवाह चेलना से संपन्न कराया था। उनके बुद्धि के चमत्कार की अनेक घटनाएँ जैन साहित्य में उल्लिखित हैं। उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत द्वारा श्रेणिक के लिए उत्पन्न विकट राजनैतिक संकट को अभय ने दूर किया था। धर्मरत्नप्रकरण के अभयकुमार नामक अध्ययन में यह कथा वर्णित है कि द्रुमक लकड़हारे द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण करने पर लोगों ने उसका मजाक उड़ाया। जब अभयकुमार को यह बात मालूम हुई तब उसने सार्वजनिक स्थान पर एक-एक करोड़ स्वर्णमुद्राओं के तीन ढेर लगवाकर यह घोषणा करवायी कि जो आजीवन स्त्री, अग्नि और सचित्त जल का त्याग करे वह इन मुद्राओं को ले सकता है। कोई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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