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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 237 मेघकुमार की कथा छठे अंग ज्ञाताधर्मकथा में विस्तार से उल्लिखित है। वह भी अनुत्तरविमान में ही उत्पन्न हुआ फिर भी मेघकुमार का वर्णन प्रस्तुत अंग में न करके छठे अंग में किया गया है। इसका कारण यह है कि ज्ञाताधर्मकथा में धर्मयुक्त पुरुषों की शिक्षाप्रद जीवन घटनाओं का वर्णन है। स्वयं मेघकुमार के जीवन की कितनी ही ऐसी घटनाएं वर्णित है, जिनको पढ़ने से प्रत्येक व्यक्ति को लाभ हो सकता है। अनुत्तरोपपातिकदशा में केवल सम्यक्चारित्र पालन करने का फल बतलाया गया है इसलिए मेघकुमार की कथा धर्मकथा के अन्तर्गत है और जालिकुमार की कथा चरण-करण के अन्तर्गत। मेघकुमार भी श्रेणिक और धारिणी देवी का ही पुत्र था। प्रव्रज्या ग्रहण के पश्चात् जालिकुमार ने गुणरत्नसंवल्सर नामक तप किया। इस प्रकार सोलह वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन कर विपुलगिरि पर्वत पर स्थविरों के साथ जाकर आयुष्य के अन्त में मरण प्राप्त करके उर्ध्वगमन करता हुआ विजय नामक अनुत्तरविमान में देवरुप में उत्पन्न हुआ। जालि अनगार को दिवंगत हुआ जानकर स्थविरों ने उनके परिनिर्वाण निमित्तिक कायोत्सर्ग किया। तत्पश्चात् उनका पात्र एवं चीवर लेकर विपुलगिरि से उतरकर श्रमण भगवान महावीर को सारी घटना सुनाकर उन्हें वे पात्र और चीवर सौंप दिये। गौतम गणधर द्वारा पूछे जाने पर भगवान ने स्पष्ट किया कि विजय नामक अनुत्तरविमान में देवरुप में उत्पन्न जालिकुमार की कालस्थिति वहां बत्तीस सागरोपम की है। वहां से वह अपना समय पूरा कर महाविदेहक्षेत्र से सिद्धि प्राप्त करेगा। • प्रथम वर्ग के द्वितीय अध्ययन से लेकर दसवें अध्ययन तक का केवल निर्देश किया गया है। इन नौ राजकुमारों में से छ: धारिणी रानी के ही पुत्र हैं। दो वेहल्ल और वेहायस चेलना के पुत्र हैं तथा अभयकुमार नन्दा का पुत्र है। सबके पिता श्रेणिक हैं। जालिकुमार की तरह ही मयालि, उपजालि, पुरुषसेन और वारिसेन का श्रमण-पर्याय सोलह-सोलह वर्षों का है। दीर्घदन्त, लष्टदन्त और वेहल्ल का श्रमण पर्याय बारह-बारह वर्षों का है तथा अंतिम दो वेहायस और अभयकुमार का श्रमण पर्याय पांच वर्षों का है। इनमें से जालि और अभयकुमार विजय में, मयालि और वेहायस वैजयन्त में, उपजालि और वेहल्ल जयन्त में, पुरुषसेन और लष्टदन्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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