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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया: 231 भेद का हेतु अवगत नहीं है । " इह तु दृश्यंते दश - इति अन्त अभिप्रायो न ज्ञायेते इति।'' वर्तमान में उपलब्ध तीन वर्ग नन्दीसूत्र में उपलब्ध होने से वल्लभी वाचना में भी इसके रहने का संकेत मिलता है। " स्थानांग में उल्लिखित “ अतिमुक्तक" अध्ययन वर्तमान में आठवें अंग अन्तकृद्दशा के षष्ठ वर्ग का पन्द्रहवाँ अध्ययन है। इसी प्रकार दिगम्बर परम्परा के ग्रंथों में प्राप्त वारिषेण नामक अध्ययन वर्तमान में इसी अंग के चौथे वर्ग का पाँचवा अध्ययन है। इसके अतिरिक्त वर्तमान में उपलब्ध अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग के जालि, मयालि, उपजालि और पुरुषसेन नामक अध्ययन भी अन्तकृद्दशा के इसी वर्ग में प्राप्त होते हैं । अन्तर सिर्फ इतना है कि इसमें जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन और वारिषेण के पिता वसुदेव, माता धारिणी, नगरद्वारिका तथा दीक्षागुरु के रुप में बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का नाम उल्लिखित है। इसी प्रकार प्रथम वर्ग में वेहल्ल और द्वितीय वर्ग में हल्ल अध्ययन का वर्णन है। इसकी कथा विस्तार से निरयावली' आवश्यकचूर्णि आवश्यकवृत्ति (हरिभद्र)' भगवतीवृत्ति (अभयदेव) " तथा आवश्यक" में वर्णित हैं। ये दोनों राजा श्रेणिक के चेलना रानी से उत्पन्न पुत्र थे। चेलना वैशाली के राजा चेटक की पुत्री थी । हल्ल ओर वेहल्ल को चेटक ने एक हाथी और सोने का हार उपहार में दिया, जिसे उसके बड़े भाई कुणिक (अजातशत्रु) ने मांगा। इन दोनों ने हाथी और हार कुणिक को देने से इनकार कर दिया और अपने नाना चेटक के पास चले आये। इस बात को लेकर चेटक और कुणिक में भयंकर युद्धं हुआ था।” भगवतीसूत्र में इन दो युद्धों - महाशिलकण्टक संग्राम और रथ-मुसल संग्राम का वर्णन है। इसमें कुणिक की विजय हुई थी। किन्तु अनुत्तरोपपातिक में चेलना के दो पुत्रों का नाम वेहल्ल ओर वेहायस दिया गया है तथा हल्लकुमार का परिचय द्वितीय वर्ग में धारिणी देवी और श्रेणिक के पुत्र के रुप में उल्लिखित है। 10 समवायांग सूत्र में इस अंग की विषयवस्तु का अल्लेख करते हुए कहा गया है :"अनुत्तरोपपातिक" में " अनुत्तरोपपातिकों" के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, समवसरण, तत्कालीन राजा, सौधर्म, ईशान आदि नाम वाले बारह स्वर्ग माने गये हैं। बारहवें स्वर्ग के ऊपर नव ग्रैवेयक विमान आते हैं और इनके ऊपर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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