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________________ 230 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा ऋजुदास, शालिभद्र, सुनक्षत्र, अभय, धन्य, वारिषेण, नंदन, नंद, चिलातपुत्र और कार्तिकेय। इसमें ऋषिदास की जगह ऋजुदास तथा कार्तिक के स्थान पर कार्तिकेय नाम उपलब्ध हैं। जयधवला में किसी विशेष नाम का उल्लेख नहीं है। दिगम्बर परम्परा के इन ग्रंथों में प्राप्त विवरणों से यह ज्ञात होता है कि इस परम्परा में श्वेताम्बर मान्य ग्यारह अंगों को लुप्त हुआ तो मान लिया गया, परन्तु इसके वर्ण्य विषय इसमें सुरक्षित रहे यद्यपि स्थानांग में उपलब्ध नामों से इसमें आंशिक भिन्नता है। स्थानांग के संस्थान, आनन्द, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्तक की जगह दिगम्बर परम्परा के ग्रंथों में नंद, नंदन, अभय, वारिषेण, और चिलातपुत्र का उल्लेख है। . वर्तमान में उपलब्ध अनुत्तरोपपातिकदशा में तीन वर्गों में कुल 33 अध्ययन हैं। स्थानांग और दिगम्बर परम्परा के ग्रंथों में उपलब्ध दस नामों में से तीन नाम :ऋषिदास, धन्य और सुनक्षत्र वर्तमान में तृतीय वर्ग में है तथा दिगम्बर परम्परा के ग्रंथों में प्राप्त वारिषेण व अभय नाम वर्तमान में प्रथम वर्ग में उपलब्ध हैं। इससे पता चलता है कि वर्तमान में उपलब्ध अनुत्तरोपपातिकदशा का प्रथम एवं द्वितीय वर्ग स्थानांग की अपेक्षा प्रक्षिप्त है तथा तृतीय वर्ग के सात अध्ययन भी बाद में कभी जोड़ दिये गये हैं। दिगम्बर परम्परा की अपेक्षा प्रथम वर्ग के अभय और वारिषेण नामक अध्ययन को छोड़कर शेष आठ अध्ययन, द्वितीय वर्ग पूरा तथा तृतीय वर्ग के ऋषिदास, सुनक्षत्र और धन्य अध्ययन को छोड़कर शेष सात अध्ययन प्रक्षिप्त हैं, यद्यपि स्थानांगसूत्र के वृत्तिकार अभयदेवसूरि स्थानांग में वर्णित शेष नाम प्रस्तुत सूत्र की किसी अन्य वाचना में होने की संभावना व्यक्त करते हैं। समवायांग और नंदीसूत्र की वाचना परिमित अर्थात् अनेक बतलायी गयी है। जहाँ तक वल्लभी वाचना के समय उपलब्ध पाठ का प्रश्न है, यह नन्दी में प्राप्त होता है। परन्तु नंदी में इस विषय में एक श्रुतस्कन्ध, तीन वर्ग तथा तीन उद्देसण काल तो कहा गया है।' किन्तु इसके अध्ययनों की संख्या व नाम का कोई उल्लेख नहीं है। एक दूसरा प्रश्न यह उपस्थित होता है कि इसी विषय में समवायांग सूत्र में प्रस्तुत अंग के एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, तीन वर्ग तथा दस उद्देसणकाल कहा गया है। अध्ययन के नाम यहाँ भी नहीं हैं। समवाय के वृत्तिकार इस संबंध में लिखते हैं कि इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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