SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुत्तरोपपातिकदशा का समीक्षात्मक अध्ययन . - डॉ. अतुल कुमार प्रसाद सिंह जैन परम्परा में ज्ञान को पाँच भागों में विभक्त किया गया है :- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान। इन पांचों ज्ञान को प्रमाण की अपेक्षा से दो भागों में विभक्त किया गया है :- प्रत्यक्ष और परोक्ष। मन और इन्द्रियों की सहायता के बिना वस्तु के स्वभाव आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेना प्रत्यक्ष है तथा मन और इन्द्रियों की सहायता से प्राप्त ज्ञान को परोक्ष कहते हैं। प्रत्यक्ष के अंतर्गत अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान आते हैं तथा मति और श्रुत ज्ञान परोक्ष हैं। आगम साहित्य श्रुत ज्ञान के अन्तर्गत है। नन्दीसूत्र में ज्ञान (प्रमाण) का वर्णन विस्तार से किया गया है। भारतीय साहित्य में "श्रुति" और "श्रुत' दोनों शब्द प्राचीन काल से प्रचलित रहे हैं। दोनों का अर्थ एक ही है- सुनी हुई या सुना हुआ। जो ज्ञान श्रवण परम्परा से उपलब्ध है, अर्थात् गुरु से शिष्य को परम्परागत रुप से कर्णोपकर्ण होकर प्राप्त हुआ है तथा अनेक प्राचीन आचार्यों ने अपने स्मरण द्वारा जिसको सुरखित रखा है, उसकी "श्रुति" संज्ञा वैदिक परम्परा में तथा "श्रुत' संज्ञा जैन परम्परा में प्रचलित है। नंदीसूत्र में श्रुत ज्ञान के चतुर्दश प्रकार बतलाये गये हैं :1. अक्षरश्रुत 2. अनक्षरश्रुत 3. संज्ञिश्रुत 4. असंज्ञिश्रुत 5. सम्यक्श्रुत 6. मिथ्याश्रुत 7. सादिकश्रुत 8. अनादिकश्रुत 9. सपर्यवसित श्रुत 10. अपर्यवसितश्रुत 11. गमिकश्रुत 12. अगमिकश्रुत 13. अंगप्रविष्टश्रुत और 14. अनंगप्रविष्टश्रुत। इनमें से तीन प्रकार श्रुत का समावेश अंग आगमों में होता है। ये हैं :1. सम्यक्श्रुत केवल ज्ञान और दर्शन को धारण करने वाले, त्रिलोकवर्ती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy