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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : XIV
अंग आगमों के प्रस्तुत अध्ययन से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि अंग आगमों का बहुत-सा भाग कालक्रम में विलुप्त हुआ है साथ ही वल्लभी वाचना के पूर्व एवं वल्लभी वाचना के समय उसकी सामग्री को न केवल संकलित किया गया अपितु उसमें संशोधन, परिवर्तन, परिवर्धन एवं विलोप भी हुआ है। इन ग्रन्थों के पुस्तकारूढ़ होने से पूर्व जो श्रुत परम्परा चलती रही, वह भी इन ग्रन्थों के पाठभेद आदि का कारण रही
अंग आगमों में उपासकदशांग को छोड़कर सामन्यतया एक ओर पुरानी सामग्री का विलोप तथा दूसरी ओर नवीन सामग्री का प्रक्षेप दोनों ही हुआ है फिर भी अंग आगमों के रूप में जो साहित्य निधि हमें आज उपलब्ध है वह भी भारतीय संस्कृति विशेष रूप से जैन धर्म, दर्शन और संस्कृति के प्राचीन स्वरूप को स्पष्ट करने में बहुत महत्वपूर्ण है।
जैसा कि हमने संकेत किया है कि प्रस्तुत कृति आचार्य श्री (तत्कालीन युवाचार्य) रामेश के सानिध्य में हुई संगोष्ठी, में पठित आलोखों का एक संकलन है फिर भी इसे अंग आगम साहित्य के परिचय की दृष्टि से व्यापक बनाने का प्रयत्न किया गया तथा इस दृष्टि से हमने उन कुछ पक्षों पर जिनके सन्दर्भ में हमे समुचित आलेख प्राप्त नहीं हो पाये, पूर्व प्रकाशित कुछ ग्रन्थों से तत्सम्बन्धी सामग्री का चयन कर उन्हें प्रकाशित किया गया।
यद्यपि अंग आगम साहित्य में ज्ञान-विज्ञान भी जो विविध विधाएँ उपलब्ध होती हैं उन सबको सम्मिलित कर पाना तो संभव नहीं है फिर भी किसी न किसी रूप में सभी पक्षों का विवेचन हो जाए, यह अवश्य ध्यान में रखा गया है। कृति के प्रारम्भ में ही स्व पं बेचरदास जी की आचांराग की विषयवस्तु सम्बन्धी विचारों को संकलित किया गया है जो उसका एक संक्षिप्त किन्तु समग्र परिचय प्रस्तुत करता है। दूसरा आलेख डॉ सुरेन्द्र वर्मा का है जिसमें उन्होंने आचारांग से कुछ महत्वपूर्ण सूत्रों का चयन कर उनकी व्यावहारिक जीवन में प्रांसगिकता एवं महत्व को उजागर किया है। तीसरा आलेख डॉ सागरमल जैन का है जो आचारांग में प्रस्तुत सूत्रों का आधुनिक मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समीक्षा करता है। चौथे आलेख में डॉ श्री प्रकाश पाण्डेय ने सूत्रकृतांग के सामान्य परिचय के साथ - साथ उसमें उपलब्ध विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का परिचय दिया है। पाँचवाँ आलेख स्थानांग के महत्वपूर्ण पक्षों पर प्रकाश डालता है। स्थानांग जैन साहित्य का प्राचीन कोश ग्रन्थ माना जा सकता है। अपने इस आलेख में डा सागरमल जैन में स्थानांग के विविध आयामों को समाहित करने का प्रयत्न किया है।
छठे आलेख में डॉ अशोक कुमार ने स्थानांग एवं समवायांग की विषयवस्तु की
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