SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ xxV : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा पुनरावृत्ति को लेकर चर्चा की है इसी क्रम में उन्होंने विषयवस्तु पर भी आंशिक दृष्टि से प्रकाश डाला है। साँतवे आलेख में डॉ माया जैन ने भगवती सूत्र का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया है। भगवती जैसे आकर ग्रन्थ के संबंध में यद्यपि यह आलेख प्राथमिक प्रयास ही कहा जा सकता है फिर भी जन-सामान्य को ग्रन्थ का परिचय देने की अपेक्षा से यह पर्याप्त है। षष्ट अंग आगम ज्ञाताधर्मकथांग है अपने नाम के अनुरूप ही यह भगवान महावीर द्वारा कथित कुछ उपमापरक और कुछ व्यक्तिपरक कथाएँ प्रस्तु करता है। डॉ प्रेम सुमन जैन ने अपने आलेख मे इन कथाओं के वैशिष्ट्य एवं उनकी मूल्यवत्ता पर प्रकाश डाला है। .. सातवे अंग आगम के रूप में उपासकंदशा का नाम आता है। यह ग्रन्थ अंग आगम साहित्य का ऐसा एकमात्र ग्रन्थ है जो श्रावकों के आचार से सम्बन्धित है प्रस्तुत कृति में डॉ रज्जन कुमार ने श्रावक जीवन के विविध पक्षों पर व्यापक प्रकाश डाला आठवाँ अंग आगम अन्तकृतदशाओं के नाम से जाना जाता है। इसमें तपस्वी साधकों के जीवन चरित्र विशेष रूप से उनकी साधना पक्ष को वर्णित किया है प्रस्तुत कृति में इस आगम पर हमें दो आलेख प्राप्त हुए है। डॉ सागरमल जैन ने अपने आलेख में मुख्य रूप से अन्तकृत की विषयवस्तु के सन्दर्भ में कब और कैसे परिवर्तन हुआ इसका परिचय दिया है। जबकि श्री मानमल कुदाल ने ग्रन्थ के सामाजिक, सांस्कृतिक और साधना पक्ष पर विचार किया है। नवें अंग आगम अनुरोपपातिकदशा के सन्दर्भ में डॉ अतुल कुमार प्रसाद सिंह ने विस्तार से प्रकाश डाला है। दसवें अंग आगम प्रश्न व्याकरण के सन्दर्भ में डॉ सागरमल जैन का आलेख प्राप्त है। इस आलेख में उन्होंने मुख्य रूप से कालक्रम मे प्रश्न व्याकरण सूत्र की विषय वस्तु में कैसा कैसा परिवर्तन आया, इसकी चर्चा की है। ग्यारहवें अंग आगम विपाकसूत्र के सन्दर्भ में डॉ सुरेश सिसोदिया का आलेख प्रस्तुत किया गया है, जो ग्रन्थ के सामान्य परिचय के साथ इसके महत्वपूर्ण सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्षों पर भी प्रकाश डालता है। बाहरवें अंग आगम दृष्टिवाद के सन्दर्भ में हमें एक आलेख डॉ. उदयचन्द जैन का प्राप्त है इस आलेख में उन्होंने मुख्यतः दिगम्बर ग्रन्थों में विशेष रूप से षटखण्डागम में दृष्टिवाद की विषयवस्तु के आधारभूत सूत्रों को प्रस्तुत किया है। चूंकि उनका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy