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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया 215 विनाश और जराकुमार के हाथ से स्वयं अपनी मृत्यु की बात सुनकर श्रीकृष्ण का मुखकमल मुर्झा जाता है, तब भगवान कहते हैं- हे श्रीकृष्ण! तुम चिन्ता न करो। आगामी भव में तुम अमम नामक तीर्थंकर बनोगे | 1° यह सुनकर श्रीकृष्ण संतुष्ट एवं खेदरहित हो गये।
प्रस्तुत आगम में श्रीकृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमार का प्रसंग अत्यन्त प्रेरणास्पद एवं रोचक है। वे भगवन् अरिष्टनेमि के उपदेश से इतने प्रभावित हुए कि सब कुछ छोड़कर श्रमण बन जाते हैं और महाकाल नामक श्मशान में जाकर भिक्षु महाप्रतिमा
स्वीकार कर ध्यान में लीन हो जाते हैं। इधर सोमिल नामक ब्राह्मण देखता है कि मेरा होने वाला जामाता श्रमण बन गया है तो उसे अत्यन्त क्रोध आता है और सोचता है कि इसने मेरी बेटी के जीवन के साथ खिलवाड़ किया है, क्रोध से उसका विवेक क्षीण हो जाता है। उसने गजसुकुमार मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर धधकते अंगार रख दिये। उसके मस्तक, चमड़ी, मज्जा, माँस आदि के जलने से महाभयंकर वेदना होती है फिर भी वे ध्यान से विचलित नहीं होते हैं। उनके मन में जरा भी विरोध एवं प्रतिशोध की भावना पैदा नहीं हुई। यह थी रोष पर तोष की विजय। दानवता पर मानवता की विजय, जिसके फलस्वरुप उन्होंने केवल एक ही दिन में अपने चरित्र - पर्याय के द्वारा मोक्ष को प्राप्त किया।
चतुर्थ वर्ग के दस अध्ययनों में उन दस राजकुमारों का वर्णन हैं जिन्होंने राज्य के सम्पूर्ण वैभव व ठाट-बाट को छोड़कर भगवान अरिष्टनेमि के पास उग्र तपश्चर्या कर केवलज्ञान को प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। इस वर्ग में निम्न दस राजकुमारों का वर्णन है :
क्र.सं.
1.
2
3.
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नाम
जालि कुमार
मालि कुमार
उवयालि कुमार
पुरूषसेन कुमार
पिता
म. वसुदेव
म. वसुदेव
म. वसुदेव
म. वसुदेव
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माता
रानी धारिणी
रानी धारिणी
रानी धारिणी
रानी धारिणी
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