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________________ 214 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा पर्व में "शूरः शौरिर्जिनेश्वर" पद आया है। विद्वानों ने "शूरःशौरिर्जिनेश्वरः" मानकर उसका अर्थ अरिष्टनेमि किया है। लंकावतार के तृतीय परिवर्तन में तथागत बुद्ध के नामों की सूची दी गई है। उनमें एक नाम "अरिष्टनेमि'' है।46 सम्भव है अहिंसा के दिव्य आलोक को जगमगाने के कारण अरिष्टनेमि अत्यधिक लोकप्रिय हो गये थे जिसके कारण उनका नाम बुद्ध की नाम-सूची में भी आया है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राम चौधरी ने अपनी कृति वैष्णव परम्परा के प्राचीन इतिहास में श्रीकृष्ण को अरिष्टनेमि का चचेरा भाई बतलाया है। कर्नल टॉड ने अरिष्टनेमि के संबंध में लिखा है कि मुझे ऐसा ज्ञात होता है कि प्राचीनकाल में चार मेघावी महापुरूष हुए हैं, उनमें एक आदिनाथ हैं, दूसरे नेमिनाथ हैं, नेमिनाथ ही स्क्रेन्द्रीनेविया निवासियों के प्रथम ओदिन तथा चीनियों के प्रथम "फो" देवता थे। प्रसिद्ध कोषकार डॉ नेगेन्द्रनाथ वसु, पुरातत्ववेत्ता डॉक्टर फुहरर, प्रो. वारनेट, मिस्टर करवा, डॉ. हरिदत्त, डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकार प्रभृति अनेक विद्वानों का स्पष्ट मन्तव्य है कि भगवान् अरिष्टनेमि एक प्रभावशाली पुरूष थे। उन्हें ऐतिहासिक पुरूष मानने में कोई बाधा नहीं है। छान्दोग्योपनिषद् में भगवान् अरिष्टनेमि का नाम "घोर आंगिरस ऋषि" आया है, जिन्होंने श्री कृष्ण को आत्मयज्ञ की शिक्षा प्रदान की थी। धर्मानन्द कौशाम्बी का मानना है कि आंगिरस भगवान् अरिष्टनेमि का ही नाम था।48 आंगिरस ऋषि ने श्रीकृष्ण से कहा- श्रीकृष्ण जब मानव का अन्त समय सन्निकट आये उस समय उसको तीन बातों का स्मरण करना चाहिये 1. त्वं अक्षतमसि - तू अविनश्वर है। 2. त्वं अच्युतमसि - तू अच्युत है। 3. त्वं प्राणसंशितमसि - तू प्राणियों का जीवनदाता है। प्रस्तुत उपदेश को श्रवणकर श्रीकृष्ण अपिपास हो गये। वे अपने आपको धन्य अनुभव करने लगे। प्रस्तुत कथन की तुलना अन्तकृत्दशा में आये हुए भगवान अरिष्टनेमि के इस कथन से कर सकते हैं कि जब भगवान के मुँह से द्वारका का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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