SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 210 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा जिन्होंने अपने कर्मों का अन्त करके मोक्ष प्राप्त किया है। इसमें 900 श्लोक, 8 वर्ग और 9 अध्ययन है। ये आठ वर्ग क्रमशः 10,8,13,10,10,16,13, और 10 अध्ययनों में विभक्त है। प्रत्येक अध्ययन में किसी न किसी व्यक्ति का नाम अवश्य आता है। किन्तु कथानक अपूर्ण है, अधिकांश वर्णनों को अन्य स्थान से पूर्ण कर लेने की सूचना दी गई हैं। “वण्णओ' की परम्परा द्वारा कथानकों को अन्यत्र से पूरा कर . लेने को कहा गया है। प्रथम अध्ययन में गौतम का कथानक द्वारावती नगरी के राजा अन्धकवृष्णि की रानी धारणी देवी की सुप्तावस्था तक वर्णन कर कह दिया गया है और बताया है कि स्वप्नदर्शन, कुमारजन्म, उसका बालकपन, विद्याग्रहण, यौवन, पाणिग्रहण, विवाह, प्रसाद एवं भोगों का वर्णन महाबल की कथा के समान चित्रित है। आगे वाले प्रायः सभी अध्ययनों में नायक-नायिका मात्र का नाम निर्देश कर वर्णन अन्यत्र से अवगत कर लेने की सूचना दी गई है। इस आगम के आख्यानों को दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम पांच वर्गों के कथानकों का संबंध अरिष्टनेमि के साथ हैं और शेष तीन वर्ग के कथानकों का संबंध महावीर.तथा श्रेणिक के साथ है। इस आगम में मूलतः दस अध्ययन रहे होंगे, उत्तरकाल में इसको विकसित कर यह रुप हुआ है। प्रथम वर्ग से लेकर पांचवे वर्ग में श्रीकृष्ण वासुदेव.का वर्णन आया है। मधुकरमुनि द्वारा संपादित अन्तकृत्द्दशा सूत्र की भूमिका में श्रीकृष्ण वासुदेव की प्रामाणिकता के बारे में विस्तृत वर्णन किया है उनके अनुसार श्रीकृष्ण वासुदेव जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा में अत्यधिक चर्चित रहे हैं। वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में वासुदेव, विष्णु, नारायण, गोविन्द, प्रभृति उनके अनेक नाम प्रचलित हैं। श्रीकृष्ण, वासुदेव के पुत्र थे, इसलिये वे वासुदेव कहलाये। महाभारत शान्तिपर्व में कृष्ण को विष्णु का रुप बताया है। गीता में श्रीकृष्ण, विष्णु के पूर्व अवतार हैं।' महाभारतकार ने उन्हें नारायण मानकर स्तुति की है। वहां उनके दिव्य और भव्य मानवीय स्वरुप के दर्शन होते हैं। शतपथब्राह्मण में उनके नारायण नाम का उल्लेख हुआ है। तैतरीयारण्यक में उन्हें सर्वगुणसम्पन्न कहा है। महाभारत के नारायणीय उपाख्यान में नारायण को सर्वेश्वर का रुप दिया है मार्कण्डेय ने युधिष्ठिर को यह बताया है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy