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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 209 था परन्तु देवार्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने इसे पुस्तकारूढ़ कर इनका हास होने से बचा लिया। इसके बाद कुछ अपवादों को छोड़कर श्रुत-साहित्य में परिवर्तन नहीं हुआ। कुछ स्थलों पर थोड़ा बहुत पाठ प्रक्षिप्त व परिवर्तन हुआ हों किन्तु आगमों की प्रामाणिकता में कोई अन्तर नहीं आया। अन्तकृतद्शांग की भाषा-शैली :- जिस प्रकार वेद-छान्दस भाषा में, बौद्धपिटक पालि भाषा में निबद्ध है, उसी प्रकार जैन आगमों की भाषा अर्धमागधी प्राकृत है। समवायांग सूत्र में लिखा है कि भगवान अर्द्धमागधी भाषा में धर्म का व्याख्यान करते हैं। भगवान द्वारा भाषित अर्द्धमागधी आर्य, अनार्य, द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी, आदि सभी की भाषा में परिणत हो जाती है- उनके लिए हितकर, कल्याणकर तथा सुखकर होती है।'' आचारांगचूर्णी में भी इसी आशय का उल्लेख है। दशवकालिक वृत्ति में भी इसी प्रकार के आशय एवं भाव व्यक्त किये गये हैं- चारित्र की कामना करने वाले बालक, स्त्री, वृद्ध, मूर्ख, अनपढ़ सभी लोगों पर अनुग्रह करने के लिए तत्वद्रष्टाओं ने सिद्धान्त की रचना प्राकृत में की। प्रस्तुत आगम की भाषा भी अर्धमागधी है। "अन्तकृत्दशासूत्र" की रचना कथात्मक शैली में की गई है। इस शैली को "कथानुयोग' कहा जाता है। इस शैली में "तेणं कालेणं तेणं समएणं" से कथा का प्रारम्भ किया जाता है। आगमों में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अनुत्तरौपपातिक, विपाकसूत्र और अन्तकृत्दशांग सूत्र इसी शैली में निबद्ध किया गया है। इस आगम में प्रायः स्वरान्तरुप ग्रहण करने की शैली को ही अपनाया गया है जैसे :- परिवसति, परिवसइ, रायवण्णतो, रायवण्णओ, एगवीसाते, एगवीसाए आदि। इस आगम में प्रायः संक्षिप्तिकरण की शैली को अपनाते हुए शब्दान्त में बिन्दयोजना द्वारा अथवा अंक योजना द्वारा अवशिष्ट पाठ को व्यक्त करने की प्राचीन शैली अपनाई है। इस सूत्र में अनेक स्थानों पर तपों का वर्णन प्राप्त होता है, इसके अष्टम वर्ग में विशेष रुप से तपों के स्वरुप एवं पद्धतियों को विवेचन किया गया है, जिनके अनेक विध स्थापनायन्त्र प्राप्त होते है। ____विषय-वस्तु :- अन्तकृत्द्दशांग सूत्र में उन स्त्री-पुरूषों के आख्यान हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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