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________________ 208 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा "दशा'" शब्द है। दशा शब्द के दो अर्थ हैं :(1) जीवन की भोगावस्था से योगावस्था की ओर गमन "दशा" कहलाता है, दूसरे शब्दों में शुद्ध अवस्था की ओर निरन्तर प्रगति ही "दशा" है। जिस आगम में दस अध्ययन हों उस आगम को भी "दशा" कहा गया है। प्रस्तुत सूत्र में प्रत्येक अन्तकृत साधक निरन्तर शुद्धावस्था की ओर गमन करता है, अतः इस ग्रन्थ में अन्तकृत साधकों की दशा . के वर्णन को ही प्रधानता देने से "अन्तकृत्दशा" कहा गया है। अन्तकृत्दशा सूत्र के कर्ता एवं रचनाकाल :- अंग आगमों के उद्गाता स्वयं तीर्थंकर और सूत्रबद्ध रचना करने वाले गणधर हैं। अंगबाह्य आगमों के मूल आधार तीर्थंकर और उन्हें सूत्र रुप में रचने वाले हैं- चतुर्दशपूर्वी, दशपूर्वी और प्रत्येकबुद्ध आचार्य। मूलाचार में आचार्य वट्टकेर ने गणधरं कथित, प्रत्येक बुद्ध कथित और अभिन्नदशपूर्वी कथित, सूत्रों को प्रमाणभूत माना है।" __ इस प्रकार अंगप्रविष्ट साहित्य के उद्गाता भगवान महावीर हैं और इनके रचयिता गणधर सुधर्मास्वामी। अंगबाह्य साहित्य में कर्तृत्व की दृष्टि से अनेक आगम स्थविरों द्वारा रचित है और अनेक द्वादशांगों से उद्धृत हैं। वर्तमान में जो अंगसाहित्य उपलब्ध है वह भगवान महावीर के समकालीन गणधर सुधर्मा की रचना है इसलिए अंग-साहित्य का रचनाकाल ई.पू छठी शताब्दी सिद्ध होता है। अंग बाह्य की रचना एक व्यक्ति की नहीं हो अतः उन सभी का एक समय नहीं हो सकता। प्रज्ञापनासूत्र के रचयिता श्यामाचार्य हैं तो दशवेकालिक सूत्र के रचयिता आचार्य शय्यंभव हैं। नन्दीसूत्र के रचयिता देववाचक हैं तो दशा, कल्प और व्यवहार सूत्र के कर्ता चतुर्दशपूर्वी के भद्रबाहु कुछ विद्वान आगमों का रचनाकाल वीर निर्वाण के पश्चात् 980 अथवा 993वाँ वर्ष जो देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण का है, मानते है उनका यह समय मानना युक्तिसंगत नहीं हैं, क्योंकि देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने तो आगमों को इस काल में लिपिबद्ध किया था, किन्तु आगम तो प्राचीन ही है। पहले आगम साहित्य को लिखने का निषेध था उसे कण्ठस्थ रुप में रखने की परम्परा थी। लगभग एक हजार वर्ष तक वह कण्ठस्थ रहा जिससे श्रुतवचनों में कुछ परिवर्तन होना स्वाभाविक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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