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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 207
नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमालि, भगालि, किंकष, चिल्वक्क, फाल और अंबडपुत्र।'
अकलंक ने राजवार्तिक और शुभचन्द्र ने अंगपण्णत्ति'' में कुछ पाठभेदों के साथ दस नाम दिये हैं- नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, यमलोक, वलीक, कंबल, पाल और अंबष्टपुत्र। इसमें यह भी लिखा है कि प्रस्तुत आगम में प्रत्येक तिर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अन्तकृत केवलियों का वर्णन है। इसका समर्थन वीरसेन और जयसेन जो जयधवलाकार हैं ने भी किया है। नन्दीसूत्र में न तो दस अध्ययनों का उल्लेख है और न उनके नामों का ही निर्देश है। समवायांग
और तत्त्वार्थराजवार्तिक में जिन अध्ययनों के नामों का निर्देश है वे अध्ययन वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृत्दशांग में नही है। नन्दीसूत्र में वही वर्णन है जो वर्तमान में अंतकृत्दशा में उपलब्ध है। इससे यह फलित होता है कि वर्तमान में अन्तकृत्दशा का जो रुप प्राप्त है वह आचार्य देववाचक के समय के पूर्व का है। वर्तमान में अन्तकृतद्शा में आठ वर्ग हैं और प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं किन्तु जो नाम स्थानांग, तत्त्वार्थराजवार्तिक व अंगपण्णति में आये हैं उनसे पृथक हैं। जैसे गौतम, समुद्र, सागर, गंभीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु। आचार्य अभयदेव ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर कहा है। इससे यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृत्दशा समवायांग में वर्णित वाचना
से अलग है। कितने ही विद्वानों ने यह भी कल्पना की है कि पहले इस आगम में • उपासकदशा की तरह दस ही अध्ययन होंगे, जिस तरह उपासकदशा में दस
श्रमणोपासकों का वर्णन है इसी तरह प्रस्तुत आगम में भी दस अर्हतों की कथाएँ आई होगी।
उपरोक्त वर्णन से हम यह कह सकते हैं कि अन्तकृद्दशा में उन नब्बे महापुरूषों का जीवनवृत्तान्त संग्रहित हैं, जिन्होंने संयम एवं तप साधना द्वारा सम्पूर्ण कर्मों पर विजय प्राप्त करके जीवन के अन्तिम क्षणों में मोक्ष-पद की प्राप्ति की। इस प्रकार जीवन-मरण के चक्र का अन्त कर देने वाले महापुरूषों के जीवनवृत्त के वर्णन को ही प्रधानता देने के कारण इस शास्त्र के नाम का प्रथम अवयव "अन्तकृत" है। नाम का दूसरा अवयव
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