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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 211 कि जनार्दन ही स्वयं नारायण हैं। महाभारत में अनेक स्थलों पर उनके नारायण रुप का निर्देश है। पद्मपुराण, वायुपुराण, वामनपुराण, कर्मपुराण, ब्रह्मवैदर्तपुराण, हरिवंशपुराण और श्रीमद्भागवत में विस्तार से श्रीकृष्ण का चरित्र वर्णित है। ____ छान्दोग्य उपनिषद में कृष्ण को देवकी का पुत्र कहा है। वे घोर अंगिरस ऋषि के निकट अध्ययन करते है। श्रीमद्भागवत् में कृष्ण को परमब्रह्म बताया है। वे ज्ञान, शान्ति, बल, ऐश्वर्य, वीर्य और तेज इन छह गुणों में विशिष्ट हैं। उनके जीवन के विविध रुपों का चित्रण साहित्य में हुआ है। वैदिक परम्परा के आचार्यों ने अपनी दृष्टि से श्रीकृष्ण के चरित्र को चित्रित किया है। जयदेव विद्यापति आदि ने कृष्ण के प्रेमी रुप को ग्रहण कर कृष्णभक्ति का प्रादुर्भाव किया। सूरदास आदि अष्ठछाप के कवियों ने कृष्ण की बाल-लीला और यौवन-लीला का विस्तार से विश्लेषण किया। रीतिकाल के कवियों के आराध्य देव श्रीकृष्ण रहे और उन्होंने गीतिकाएँ व मुक्तकों के रुप में पर्याप्त साहित्य का सृजन किया। आधुनिक युग में भी वैदिक परम्परा के विज्ञों ने प्रिय-प्रवास, कृष्णावतार आदि अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। ... बौद्ध साहित्य के घटजातक' में श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन आया है। यद्यपि घटनाक्रम में व नामों में पर्याप्त अन्तर है, तथापि कृष्ण-कथा का हार्द एक सदृश है। जैन परम्परा में श्रीकृष्ण सर्वगुणसम्पन्न, श्रेष्ठ, चरित्रनिष्ठ, अत्यन्त दयालु शरणागतवत्सलं, धीर, विनयी, मातृभक्त, महानवीर, धर्मात्मा, कर्तव्यपरायण, बुद्धिमान, नीतिमान और तेजस्वी व्यक्तित्व के धनी हैं। समवायांग' में उनके तेजस्वी व्यक्तित्व का जो चित्रण है, वह अद्भुत है, वे त्रिखण्ड के अधिपति अर्धचक्री हैं। उनके शरीर पर एक सौ आठ प्रशस्त चिह्न थे। वे नरवृषभ और देवराज इन्द्र के सदृश थे, महान् योद्धा थे। उन्होंने अपने जीवन में तीन सौ साठ युद्ध किये किन्तु किसी भी युद्ध में वे पराजित नहीं हुए। उनमें बीस लाख अष्टपदों की शक्ति थी।'' किन्तु उन्होंने अपनी शक्ति का कभी भी दुरुपयोग नहीं किया। वैदिक परम्परा की भांति जैन परम्परा ने वासुदेव श्रीकृष्ण को ईश्वर का अंश या अवतार नहीं माना है। वे श्रेष्ठतम शासक थे। भौतिक दृष्टि से वे उस युग के सर्वश्रेष्ठ अधिनायक थे किन्तु निदानकृत होने से वे आध्यात्मिक दृष्टि से चतुर्थ गुणस्थान से आगे विकास न कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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