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________________ 182 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा करता है और इच्छा-परिमित को अपरिग्रह कहा गया है। अपरिग्रह अणुव्रत का मुख्य ध्येय धन-धान्य आदि वस्तुओं की मर्यादा या सीमांकन करना है। इसके 5 अतिचार हैं।4- क्षेत्र वस्तु की मर्यादा का अतिक्रमण, हिरण्य-सुवर्ण की मर्यादा का अतिक्रमण, द्विपद-चतुष्पद प्रमाण की मर्यादा का अतिक्रमण, धन-धान्य की मर्यादा का अतिक्रमण एवं कुवियधातु की मर्यादा का अतिक्रमण। . _ 1. क्षेत्रवस्तु प्रमाणातिक्रम : कृषियोग्य भूमि, मकान आदि हेतु निर्धारित मर्यादा का उल्लंघन। 2. हिरण्य स्वर्ण प्रमाणातिक्रम : स्वर्ण-रजत आदि बहुमूल्य धातुओं की सीमा का अतिक्रमण। 3. द्विपद-चतुष्पद प्रमाणातिक्रम : दास-दासी, पशु आदि की मर्यादा का उल्लंघन। 4. धन-धान्य प्रमाणातिक्रम : हीरे-मोती-माणिक, चावल-गेंहू धान आदि वस्तुओं की मात्रा का उल्लंघन। 5. कुप्य प्रमाणातिक्रम : गृहोपकरण,शय्या, आसन - वस्त्रादि की रखी मर्यादा का अतिक्रमण। रत्नकरंडकश्रावकाचार में 5 अतिचार इस प्रकार हैं - अतिवाहन, अतिसंग्रह, अतिविस्मय, अतिलोभ और अतिभारारोपण। तीन गुणव्रत :- श्रावक के द्वादश व्रतों में तीन गुणव्रतों का विधान किया गया है। श्रावकों द्वारा प्रतिपालित अणुव्रतों के विकास और रक्षण में गुणव्रत का अप्रतिम योगदान माना जाता है। अतः श्रावकों द्वारा ये आवश्यक रुप से पालनीय माने गए हैं। गुणव्रत के परिपालन करने से श्रावक अपने अणुव्रतों का पालन दृढ़ता पूर्वक करता है। गुणव्रतों की संख्या 3 मानी गई है, यहाँ हम-तीन गुणव्रतों पर विचार करेंगे/6 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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