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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 181 अतिचार हैं- इत्वरपरिगृहीतागमन, अपरिगृहीतागमन, परिगृहीतागमन, अंनगक्रीड़ा, परविवाहकरण और कामभोग तीव्र अभिलाषा । 1. इत्वरपरिगृहीतागमन 2. अपरिगृहीतागमन 3. अनंगक्रीड़ा 4. परविवाहकरण 5. : किसी दूसरे के द्वारा स्वीकृत अमुक समय तक वेश्या या वैसी साधारण स्त्री का उस कालावधि में भोग करना । अनाथ : वेश्या का, वियोगिनी स्त्री का, या किसी पुरूष के कब्जे में नहीं रहने वाली स्त्री का उपभोग करना । : अस्वाभाविक काम सेवन अथवा सृष्टि विरूद्ध काम-- सेवन । : अपने परिवार के सदस्यों को छोड़कर अन्य का विवाह कराना। कामभोग तीव्र अभिलाषा : कामासक्त होकर कामजनक औषध का प्रयोग करना, मादक पदार्थों का सेवन करके विविध प्रकार से कामक्रीड़ा करना । Jain Education International (ङ) अपरिग्रहाणुव्रत :- ग्रहण करना परिग्रह है। परिग्रह का कारण इच्छा को माना गया है और इच्छा तृष्णा के कारण जन्म लेती है। इन सबके मूल में आसक्ति ही सर्वप्रमुख कारण है। यही कारण है कि जैनाचार्यों ने परिग्रह का मुख्य कारण मूर्च्छा (आसक्ति) को माना है। आसक्ति मोह के उदय से होती है। इस संबंध में आचार्य अमृत चंद्र का मंतव्य दृष्टव्य है" - मोह के उदय से हुआ ममत्व परिणाम मूर्च्छा है और यही मूर्च्छा भाव परिग्रह है। इसी परिग्रहभाव के वशीभूत होकर व्यक्ति बाह्य और आभ्यंतर वस्तु को ग्रहण करता रहता है और उनके प्रति आसक्ति रखता है। इसी आसक्ति के वशीभूत होकर वह उन वस्तुओं को 'मेरा है' कहकर अपनी आसक्ति को प्रकट करता है । उसका यही संकल्प परिग्रह है। 2 इन सबके विषय में चित्त को संकुचित करना ही अपरिग्रह है । यही चित्त संकुचन इच्छाओं को परिमित For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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