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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 171
पुष्पचूलिका व वृष्णिदशा; 1 मूलसूत्र -
उत्तराध्ययन कुल 13 सूत्र। 3. गणितानुयोग : जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति
- 3 उपांग। 4. द्रव्यानुयोग : 4 अंग – सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग
व व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती); 2 उपांग - जीवाभिगम व प्रज्ञापना; 2 मूलसूत्र - नंदी
व अनुयोगद्वार कुल 8 सूत्र। दिगम्बर परंपरा में मान्य 4 अनुयोग इस प्रकार हैं।61. प्रथमानुयोग : महापुराण और अन्य पुराण 2. करणानुयोग : त्रिलोकप्रज्ञप्ति, त्रिलोकसार आदि
3. चरणानुयोग : मूलाचार आदि . 4. द्रव्यानुयोग : समयसार प्रवचनसार, गोम्मटसार आदि ... विद्वानों ने अनुयोगों की तुलना वैदिक साधना के विभिन्न पक्षों के साथ करने का प्रयत्न किया है। आचार्य देवेन्द्र मुनि का मानना है कि द्रव्यानुयोग का संबंध ज्ञानयोग से है, चरण-करणानुयोग का कर्मयोग से, धर्मकथानुयोग का भक्तियोग से तथा गणितानुयोग मन को एकाग्र करने की प्रणाली होने से राजयोग से मिलता है। अतः अनुयोगों की उपयोगिता आगम वर्गीकरण में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है।
___ अंगसाहित्य और उपासकदशांग :- उपासकदशांग द्वादशांगी का सातवाँ अंग है। इसमें भगवान महावीर के समकालिक 10 उपासकों के जीवन चरित्र का विवरण प्रस्तुत किया गया है। श्रमण परंपरा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा जाता है इसीलिए इस अंग ग्रंथ को उपासकदशांग नाम दिया गया। क्योंकि दशा शब्द दस संख्या एवं अवस्था का वाचक माना जाता
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