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170 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
स्थानकवासी मान्य आगम 11 अंग + 12 उपांग + 6 मूलसूत्र + 6 छेदसूत्र + 10 प्रकीर्णक = 45 आगम 11अंग + 12 उपांग + 4 मूलसूत्र (दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, अनुयोग -द्वार, नंदीसूत्र) + 4 छेद (निशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प, दशाश्रुतस्कंध) + 1 आवश्यकसूत्र = 32 आगम 84 आगमों की अवधारणा - 11 अंग + 12 उपांग + 6 मूल + 6 छेद + 10 प्रकीर्णक + कल्पसूत्र, यतिकल्प, जीतकल्प (सोमप्रभसूरि) + श्रद्धाजीत कल्प (धर्मघोष सूरि) + मरणसमाधि + सिद्धप्राभृत + तीर्थोद्गार + आराधनापताका + द्वीपसागरप्रज्ञप्ति + ज्योतिषकरंडक + अंगविद्या + तिथि प्रकीर्णक + पिण्ड विशुद्धि + सारावली + पर्यन्ताराधना + जीवविभक्ति + कवच प्रकरण + आवश्यक नियुक्ति + दशवैकालिक नियुक्ति + उत्तराध्ययन नियुक्ति + आचारांग नियुक्ति + सूत्रकृतांग नियुक्ति + सूर्यपज्ञप्ति नियुक्ति + बृहत्कल्प नियुक्ति +व्यवहार नियुक्ति + दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति + ऋषिभाषित-नियुक्ति + संसक्त नियुक्ति + विशेषावश्यक भाष्य।
चार अनुयोग :- व्याख्याक्रम, विषयगत भेद आदि की दृष्टि से आर्यरक्षित सूरि ने श्वेताम्बर मान्य आगमों को चार भागों में वर्गीकृत किया, जो अनुयोग कहलाते हैं। :1. चरण-करणानुयोग : आचारांग तथा प्रश्न व्याकरण (2 अंग),
दशवकालिक (1 मूलसूत्र), निशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प एवं दशाश्रुतस्कंध (4 छेदसूत्र) तथा आवश्यक-ये आठ सूत्र
आते हैं। 2. धर्मकथानुयोग : 5 अंग – ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा,
अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोप- पातिकदशा; 7 उपांग - औपपातिक, राजप्रश्नीय, निरयावली, कल्पावतंसिका, पुष्पिका,
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