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________________ 164 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा का निर्माण करवाया। इन नगरों में परस्पर आवागमन के मार्ग क्या थे और इनकी स्थिति क्या थी इसकी जानकारी भी एक शोधपूर्ण अध्ययन का विषय बनती है। विभिन्न पर्वतों, नदियों, वनों, के विवरण भी इस ग्रन्थ में उपलब्ध हैं कुछ ऐसे नगर भी हैं, जिनकी पहचान अभी करना शेष है। . सामाजिक धारणाएँ :- इस ग्रंथ में सामाजिक, रीतिरिवाजों, खान-पान, वेशभूषा एवं धार्मिक तथा सामाजिक धारणाओं से संबंधित सामग्री भी एकत्र की जा सकती है। महारानी धारिणी की कथा में स्वप्नदर्शन और उस के फल पर विपुल सामग्री प्राप्त है। जैनदर्शन के अनुसर स्वप्न का मूल कारण दर्शनमोहनीय कर्म का उदय है। दर्शनमोह के कारण मन में राग और द्वेष का स्पन्दन होता है, चित्त चंचल बनता है। शब्द आदि विषयों से संबंधित स्थूल और सूक्ष्म विचार-तरंगों से . मन प्रकपित होता है। संकल्प-विकल्प या विषयोन्मुखी वृत्तियां इतनी प्रबल हो जाती है कि नींद आने पर भी शांति नहीं होती। इन्द्रियां सो जाती हैं, किन्तु मन की वृत्तियाँ भटकती रहती हैं। वे अनेक विषयों का चिन्तन करती रहती हैं। वृत्तियों की इस प्रकार की चंचलता ही स्वप्न है। आचार्य जिनसेन ने स्वस्थ अवस्था वाले और अस्वस्थ अवस्था वाले, ये दो स्वप्न के प्रकार माने हैं। जब शरीर पूर्ण स्वस्थ होता है तो मन पूर्ण शांत रहता है, उस समय जो स्वप्न दीखता है वह स्वस्थ अवस्था वाला स्वप्न है। ऐसे स्वप्न बहुत ही कम आते हैं और ये प्रायः सत्य होते हैं। मन विक्षिप्त हो और शरीर अस्वस्थ हो, उस समय देखे गये स्वप्न असत्य होते हैं ते च स्वप्ना द्विधा भ्राता स्वस्थास्वस्थात्मगोचराः,। समस्तु धातुभिः स्वस्वविषमे रितरे मता।। तथ्या स्युः स्वस्थसंदृष्टा मिथ्या स्वप्नो विपर्ययात,। जगत्प्रतीतमेतद्धि विद्धि स्वप्नविमर्शन।। - महापुराण, 41-59/60 इसी प्रकाधारिणी के दोहद की भी विस्तृत व्याख्या की जा सकती है। उपवन भ्रमण का दोहद बड़ा सार्थक है। दोहद की इस प्रकार की घटनाएँ आगम साहित्य में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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