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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 157 वस्तुतत्व विवेचन शैली :- व्याख्याप्रज्ञप्ति के प्रत्येक प्रसंग में वस्तुतत्व का भी विवेचन हुआ है। तेरहवें शतक के चौथे उद्देशक में लोक के स्वरूप का वास्तविक विवेचन कई प्रकार की दृष्टि से किया गया है। अस्तिकाय के प्रदेश, परमाणु, स्पर्श में गणना को भी महत्व दिया गया है। भाषा विवेचन में भाषा को आत्मा या जीव, यह प्रश्न करके उसका समाधान करते हुए यही कहा गया कि जो बोलते समय बोली जाती है, वह भाषा कहलाती है। बोलने से पूर्व भाषा नहीं कहलाती है, यह अरूपी है, पुद्गल का विषय है, इसी तरह के जितने भी विचार हैं, उनके मूल में वस्तुतत्व का विवेचन ही महत्वपूर्ण है। विचारात्मक शैली :- व्याख्याप्रज्ञप्ति ज्ञान-विज्ञान का महासमुद्र है। इस समुद्र में जितने प्रश्न, उससे कहीं अधिक उसके समाधान नए-नए विचारों को उत्पन्न करते हैं। यदि लेश्या की समस्त वर्णन शैली पर दृष्टि डालते हैं तो यही विचार उत्पन्न होता है कि इस संसार में जितने प्रकार के लोग हैं उतने ही प्रकार के उनके विचार हैं, उनकी प्रवृति है। : आध्यात्मप्रधान शैली :- कुछ प्रसंगों को छोड़कर संपूर्ण व्याख्याप्रज्ञप्ति में आत्मा/ज्ञान का ही आलोक है इसलिए इसका विवेचन आत्मा से जुड़ा होने के कारण आध्यात्मिक शैली से युक्त है। सूत्रात्मक शैली :- यह सूत्र ग्रंथ है इसलिए संक्षिप्त में ही प्रश्न किया गया और उसका समाधान भी उसी के अनुरूप सरल रूप में प्रतिपादित किया गया। किं जरा सोगे? यह प्रश्न है उसका संक्षिप्त समाधान इस प्रकार किया गया"जीवाणं जरावि सोगेवि", अर्थात् जीवों में जरा भी है और शोक भी। इस सूत्र से एकेन्द्रिय जीव से लेकर पंचेन्द्रिय, देव, नारकी व तिर्यंच के जरा तथा शोक का बोध हो जाता है। भाषा शैली :- भाषा अर्थात् कथन पद्धति में निम्न विशेषताएँ है :1. संक्षिप्तीकरण की भावना। 2. दृष्टान्तपरक पद्धति। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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