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________________ 156 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा है? पृथ्वी का स्वरूप क्या है, वह कैसे आहार ग्रहण करती है? वह कैसे श्वास लेती है? उसमें कितने प्रकार के बल हैं? वह कितने प्रकार की हैं? इत्यादि विवेचन इस बात को भी प्रमाणित करता है कि पृथ्वी में स्पर्शन है, बल की दृष्टि से कायबल है, उसका भी आयुकर्म होता है तथा वह भी प्रतिसमय श्वास लेती है और श्वास छोड़ती है, पृथ्वी विविध प्रकार की है यदि खर पृथ्वी है तो उसकी आयु बाईस हजार वर्ष की कही गई है। स्निग्ध पृथ्वी की आयु 1000 वर्ष, शुद्ध पृथ्वी की 12,000 वर्ष, बालुका पृथ्वी की 14000 वर्ष, मनःशिला पृथ्वी की 16,000 वर्ष एवं शर्करा पृथ्वी की 18000 वर्ष मानी गई है। अतः प्रश्नोत्तर शैली के मूल में प्रश्न व उनके समाधान सरल से सरलतम तथा व्यापक रुप में समझाए गए हैं। ____ वर्णनात्मक शैली :- व्याख्याप्रज्ञप्ति में विषय वर्णन की प्रधानता भी है। जैसे :- प्रमाणाप्रवज्जा के समय में कौनसे देव उपस्थित हुए, राजा-युवराज, तलवर, मांडविक, कौटुम्बिक, श्रेष्ठी सातवाह आदि कितने आए और किस प्रकार का उन्होनें तप किया। बाल तपस्वी, तामली के कथानक में चिंतन की अभिव्यक्ति है। विवेचनात्मक शैली :- व्याख्याप्रज्ञप्ति का विषय ही विवेचन करने का है इसलिए इसके प्रत्येक प्रश्न के साथ जो उत्तर दिया गया, उसमें विवेचन भी महत्वपूर्ण है। जीव के लघुता व गुरुता के प्रसंग में प्राणातिपाद, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, द्वेष, कलह, अभ्यख्यान, पैशून्य, रति-अरति, पर-परिवाद, माया-मृषा और मिथ्यादर्शनशल्य इन अठारह पाप स्थानों का संकेत इसमें उल्लिखित है। उपदेशात्मक शैली :- आगम के मूल में उपदेश की भी प्रधानता रहती है इसलिए जहाँ पर किसी कथानक को आधार बनाया गया वहाँ उपदेश स्वाभाविक रुप से आ गया है। पिंगल निर्ग्रन्थ के कथानक में क्या लोक सान्त है, जीव सान्त है, सिद्धि शान्त है, सिद्ध सान्त है और किस मरण से मरता हुआ जीव संसार बढ़ाता है? इन प्रश्नों का केवल समाधन ही नहीं, अपितु उनके कारण उपदेश रुप में भी समझाए गए हैं। स्कन्धक की संलेखना भावना के संदर्भ में भी इसी तरह का विवेचन हुआ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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