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136 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
इसी प्रकार शरीर के चार और पाँच प्रकार', क्षुद्र प्राणी के द्वीन्द्रियादि चार और छः प्रकार जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के समीप चार और छः अकर्मभूमियाँ,26 संज्ञी के आहारादि चार और दस प्रकार”, इन्द्रियों के श्रोत्रेन्द्रियादि पाँच और छ: विषय, ऋद्धियुक्त मनुष्यों के पाँच और छः भेद, जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के समीप वर्षों की संख्या और वर्षधर पर्वतों की संख्या छः और सात बतायी गयी है।। समस्त जीवों के आभिनिबोधिकादि छः और आठ प्रकार, पृथ्वीकायिक की अप्कायिकादि में गति-आगति छः और नौ प्रकार की है। __दर्शन परिणाम के सम्यग्दर्शनादि, योनिसंग्रह के अण्डजादि, अण्डज की गति-आगति एवं पृथ्वी के रत्नप्रभादि, सात और आठ प्रकार वर्णित हैं।” सुषमा के अकाल में वर्षादि का न होना एवं दुषमा के अकालवर्षादि' सात और दस लक्षण, जम्बूद्वीप में भारतवर्ष के अतीत उत्सर्पिणी आगामी उत्सर्पिणी में सात और दस कुलकर बताये गये हैं।
आलोचना देने योग्य साधु के आचारादि स्थान", अपने दोषों की आलोचना करने योग्य साधु के स्थानों, तृण-वनस्पति के कूलादि अवयवों और सूक्ष्म जीवों के प्राण सूक्ष्मादि भेदों की संख्या आठ और दस प्रतिपादित है। समवायांग में प्रयोग के तेरह और पन्द्रह भेद वर्णित हैं।।
इसी प्रकार कुछ विषय तीन स्थलों पर संग्रहित हैं जैसे उपघात के उद्गमोपघातादि, विशोधि के उद्गमविशोधि" आदि तीन, पाँच और दस प्रकार, तृणवनस्पति के अग्रबीजादि चार, पाँच और छः प्रकार, जीव के पृथ्वीकायिक आदि छः, सात और नौ प्रकार, लोकान्तिक विमान के सारस्वतादि लोकान्तिक देवों के सात, आठ और नौ प्रकार", पृथ्वीकायिकादि विषयक संयम" और असंयम दोनों के सात, दस और सत्रह प्रकार वर्णित हैं।
कुछ तथ्य चार स्थलों पर संगृहीत हैं। जैसे लोकस्थिति की आकाश पर वायु आदि तीन, चार, छ: और आठ स्थितियाँ, संसार समापन्नक जीवों के चार, पाँच, सात और आठ प्रकार, संवर के श्रोतेन्द्रिय संवरादि और असंवर के श्रोत्रेन्द्रिय असंवरादि पाँच, छः, आठ और दस प्रकार वर्णित हैं।
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