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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 135
जैसा कि उपर उल्लेख किया जा चुका है स्थानांग में एक पदार्थ या विषय को दो स्थानों पर प्रतिपादित किये जाने की बहुलता है। ऐसे पदार्थों की संख्या लगभग 70 है। इसके अतिरिक्त लगभग दस विषयों का तीन स्थलों पर चार विषयों का चार स्थलों पर, प्रायश्चित का पांच स्थानों पर और पुद्गल का दस स्थानों पर संग्रह है।
दो स्थलों पर पुनरावृत्त तथ्यों का विवरण इस प्रकार है- बोधि के ज्ञानादि, बुद्ध के ज्ञानबुद्धादि, धर्म के श्रुतधर्मादि और प्रत्याख्यान त्यागा के मनादि द्वारा, दो और तीन प्रकार, कर्म के प्रदेश कर्मादि।। एवं जम्बूद्वीप में मंदर पर्वत के दक्षिण में हैमवत और उत्तर में हैरण्यवत क्षेत्र में वृत्तवैताढ्य के दो और चार भेद, मंदरपर्वत से दक्षिण में चुल्लहिमवान् वर्षधर से ऊपर कूटों की और मंदर पर ही महाहदों14 की संख्या दो और छः बतायी गई है। औपमिक काल के पल्योपमादि। तथा दर्शन के सम्यग्दर्शनादि दो और आठ भेद वर्णित हैं। समाधि, उपधान, विवेक आदि बारह प्रतिमाओं का दो स्थलों पर वर्णन है। ... पुनः जीव के त्रस और स्थावर के तीन-तीन भेदों की जीव निकाय के 6 भेदों के रुप में पुनरावृत्ति,' प्रणिधान, सुप्रणिधान,” और दुष्प्रणिधान के मन, वचन कायादि क्रमशः तीन और चार भेद, देवों के देवलोक से मनुष्यलोक में शीघ्र न आ सकने के तीन और चार कारण, वाचना के अयोग्य और योग्य तीन और चार प्रकार के साधु प्रव्रज्या के तीन-तीन के चार वर्ग और चार-चार के पाँच वर्ग, वर्णित हैं। ..
मनुष्य लोक और देवलोक में अन्धकार होने , देवों के मनुष्य लोक में आगमन', देवों की सामूहिक उपस्थिति, देवों का कलकल शब्द", देवेन्द्रों का मनुष्य लोक में शीघ्र आगमन', सामानिक आदि देवों के अपने सिंहासन से उठने', सिंहनाद करने, वस्त्रों के उछालने', देवों के चैत्यवृक्षों के चलायमान होने और लोकान्तिक देवों के मनुष्य लोक में आने', इनमें से प्रत्येक के तीन और चार कारण बताये गये हैं।24
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