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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 115
(17) सर्वमेतदिदं ब्रह्म, छा उ.3/14/1,सर्वखल्विंद ब्रह्म, मैलेयुप 4/6/3 (18) सूत्रकृतांग 1/1/9-10 (19) वही,1/1/10 (20) वही, 1/1/11-12, 2/1/648-653, शीलांकवृत्ति पत्रांक 20 (21) वही, 1/1/10-11, पृष्ठ 26 (22) बृहद उप., 4/6/13 (23) संते के समण ब्राह्मणा एवं वादिनो एवं दिट्टानो - तंजीवंतं शरीरं इदमेव
सच्चं मोघमंअति। सु.पि उदान, पढ़मनातित्थिय सुत्तं, पृष्ठ 142 (24) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति, पत्रांक 20-21 (25) सूत्रकृतांग, 2/1/653 (26) वही, 1/1/13-14 (27) वही, 1/1/15-16 (28) गीता, 2/16 (29) ईश्वर कृष्ण, सांख्यकारिका-9 (30) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 24-25 (31) दीघनिकाय 1/1, अनु भिक्षु राहुल सांकृत्यायन एवं जगदीशकश्यप,
भारतीय बौद्ध शिक्षा परिषद् बुद्ध विहार, लखनऊ (32) मज्झिमनिकाय - 1/1/2 (33) सूत्रकृतांग, 1/1/17-18 (34) सुत्तपिटक, भाग 3, पृष्ठ 153 (35) जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग - 2, पृष्ठ 138 (36) नियतेनैव भावेण सर्वेभावा भवन्ति यत्।
- शास्त्रवार्तासमुच्चम, 2/61 (37) सूत्रकृतांग, 1/2/28, 1/1/28-32 (38) वही, 1/2/33-50
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