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________________ 114 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा के मध्य आनुभविक स्तर पर एक यथार्थ समन्वय प्रस्तुत करती है तथा नैतिक एवं धार्मिक जीवन की तर्क संगत व्याख्या करती है। सन्दर्भ : (1) सूत्रकृतांग निर्युक्ति, गाथा 18-20 तथा उनकी शीलांक वृत्ति (2) सूत्रकृतांगसूत्र, सम्पादक अमर मुनि, आत्मज्ञान पीठ, भावसार, 1979, पृष्ठ 12-13 (3) सूत्रकृतांगसूत्र, संपादक मधुकर मुनि, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर 1982, 1/1/1 (4). उत्तराध्ययन, 8/15 (5) सूत्रकृतांग शीलांक टीका पत्रांक-12 (6) सकषायत्वाज्जीव : कर्मणो योग्यान पुद्गलानादन्ते सबंधः (7) तत्त्वार्थवार्तिक, 2/10/2 (8) सर्वार्थसिद्धि, 1/4 (9) तत्त्वार्थवार्तिक, 2/10 (10) द्रव्य संग्रह, 2/32 (11) सूत्रकृतांग 1/1/6, पृष्ठ 10 (मधुकर मुनि) ( 12 ) (क) सूत्रकृतांग 1/1/5 (ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक - 14 (ग) सूत्रकृतांग चूर्णि मूलपाठ टिप्पणी, पृष्ठ 2 - तत्त्वार्थ सूत्र- 8/2 (13) सूत्रकृतांग 1/1/7-8,2/1/654 (14) सर्वदर्शन संग्रह, पृष्ठ 10, प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृष्ठ 115 (15) सूत्रकृतांग निर्युक्ति - गाथा 33 (16) सूत्रकृतांग, 2/1/657 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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