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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 77
वस्तुतः मेधावी पुरुष ही मुनि है। मुनि का अर्थ है ज्ञानी । आयारो के अनुसार जो पुरुष अपनी प्रज्ञा से लोक (संसार) को जानता है वह मुनि कहलाता है। ऐसा व्यक्ति धर्मविद् और ऋजु होता है- पण्णाणेहिं परियाणह लोयं मुणीति वच्चे, धम्मविउत्ति अंजू (122/5) मुनि को "कुराल' भी कहा गया है। कुशल का भी अर्थ है- ज्ञानी कुशल अपने ज्ञान से जन्म-मरण के चक्र का अतिक्रमण कर पुनः न बद्ध होता है और मुक्त न होता है- कुसले पुण णो बद्धे, णो मुक्के (106/182)।
आत्मतुला- अहिंसक जीवन का रक्षाकवच (तावीज़)
यदि हम हिंसा के गति - विज्ञान से परिचित हैं तो हमें यह समझते देर नहीं लगेगी कि हिंसा के कारण हमारा संसार नरक बन गया है। हिंसा एक ऐसी मानसिक ग्रंथि है जिसका मोह हम छोड़ नहीं पाते और हमारी मृत्यु का वह कारण बनती है :
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एस खलु गंथे
एस खलु मोहे
एस खलु
मारे
एस खलु गर
(पृष्ठ 11/25)
• जिसने हिंसा में निहित इस आतंक और अहित को देख लिया है, उसे हिंसा .से. निवृत्त होने में समय नहीं लगेगा लेकिन यह " देखना " कोरा बौद्धिक ज्ञान नहीं है। यह तो वस्तुतः एक आध्यात्मिक अनुभव है। जब तक कि हम अपने आप में अंदर से इस बात को नहीं समझते, हम बाह्य जगत में व्याप्त हिंसा को भी नहीं समझ सकते। महावीर कहते हैं- जो अध्यात्म को जानता है, बाह्य को जानता है। जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है।
जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ ।
जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ ॥
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- (पृष्ठ 42/147)
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