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76 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
आयारो में मेधावी, धीर, वीर आदि शब्द लगभग समानार्थक हैं। जो मेधावी नहीं है, वह मंदमति है; जो धीर नहीं है, वह आतुर है; जो वीर नहीं है, वह कायर है। संसार में दो प्रकार के व्यक्ति हैं । एक वर्ग मेधावी, धीर और वीर पुरुषों का है और दूसरा मंदमति, आतुर और कायर लोगों का है। जो मेधावी हैं वे धीर भी हैं। जो मंदमति हैं वे आतुर और कायर भी हैं।
वीर पुरुष कौन है? वीर पुरुष हिंसा में लिप्त नहीं होता - ण लिप्पई छणपण वीरे (106/180)। मेधावी अहिंसा के मर्म को जानता है- से मेहावी अणुग्धायणास्स खयण्णे (106/181)। इसके विपरीत कायर मनुष्य हिंसक होते हैं; विषयों से पीड़ित, विनाश करने वाले भक्षक और क्रूर होते हैं। हिंसा की अपेक्षा से कायर दुर्बल नहीं है और न ही वीर बलवान है। वसट्टा कायरा जणा लूसगा भवंति - विषयों में लिप्त कायर व्यक्ति "लूषक" (हिंसक, भक्षक, प्रकृति से क्रूर) होता है।
धीर पुरुष धैर्यवान है। आतुर अधीर हैं। आतुर लोग हर जगह प्राणियों को दुःख और परिपात देते हैं, इसे स्पष्ट देखा जा सकता है- तत्थ-तत्थ पुढो पास, आतुरा परितावेंति (8/15) । इसका कारण है, आतुर मनुष्य आसत्ति से ग्रस्त होता है। यही आसक्ति मनुष्य को आशा/निराशा के झूले में झुलाती है और उसे स्वेच्छाचारी बनाती है। किंतु धीर पुरुष वह है जो इस आशा और स्वच्छंदता को छोड़ देता हैआसं च छंदं च विगिंच धीरे (88 / 86 ) |
आयारो जब मनुष्य के दो विपरीत गुण-धर्मी प्ररूपों का उल्लेख करता है तो क्या वह इनको पूर्णतः एकांतिक मानता है? क्या मेधावी और मंदमति पूर्णतः मंदमति ही रहता है? स्पष्टतः 'मेधावी' और 'मूढ़' एकांतिक प्ररुप नहीं हैं। आयारो में स्पष्ट दिखाया गया है कि मेधावी पुरुष भी किस प्रकार च्युत होकर पुनः मंदमति या मूढ़ हो जाते हैं। उत्तरोत्तर आने वाले दुःसह परीषहों को सहन न कर पाने के कारण (234/32) वे प्रयत्न द्वारा अर्जित किया हुआ अपना मुनि - पद छोड़ देते हैं। इसी प्रकार मेधावी आरंभ से ही मेधावी नहीं होते। वे उत्तरोत्तर ही इस दिशा की ओर अग्रसर होते हैं।
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