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चतुर्थ अध्याय सौधर्मेशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठशुक्रमहाशुक्रशतार सहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजयवैजयन्त
जयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च।।1।। सूत्रार्थ - सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ट,
शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार तथा आनत-प्राणत, आरण-अच्युत, नौ ग्रैवेयक और विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धि में वे निवास करते हैं।।19॥
पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु।।2।। सूत्रार्थ - दो, तीन, कल्प युगलों में और शेष में क्रम से पीत, पद्म और शुक्ल
लेश्यावाले देव हैं।।22॥
__ सौधर्मशानयोः सागरोपमे अधिके ।।29।। सूत्रार्थ - सौधर्म और ऐशान कल्प में दो सागरोपम से कुछ अधिक उत्कृष्ट स्थिति है।।29।।
__सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्त।।30॥ सूत्रार्थ - सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में सात सागरोपम से कुछ अधिक
__ उत्कृष्ट स्थिति है।।30॥
त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपञ्चदशभिरधिकानि तु।।31।। सूत्रार्थ -ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर युगल से लेकर प्रत्येक युगल में आरण-अच्युत तक क्रम . से साधिक तीन से अधिक सात सागरोपम, साधिक सात से अधिक
सात सागरोपम, साधिक नौ से अधिक सात सागरोपम, साधिक ग्यारह से अधिक सात सागरोपम, तेरह से अधिक सात सागरोपम और
पन्द्रह से अधिक सात सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है।।31॥ आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च।।32।। सूत्रार्थ - आरण-अच्युत के ऊपर नौ ग्रैवेयक में से प्रत्येक में, नौ अनुदिश में,
चार विजयादिक में एक-एक सागरोपम अधिक उत्कृष्ट स्थिति है तथा सर्वार्थसिद्धि में पूरी तैंतीस सागरोपम स्थिति है।।32।।
अपरा पल्योपममधिकम्।।33।। सूत्रार्थ - सौधर्म और ऐशान कल्प में जघन्य स्थिति साधिक एकपल्योपम है।।33।।
परतः परतः पूर्वापूर्वाऽनन्तरा।।34।। सूत्रार्थ - आगे-आगे पूर्व-पूर्व की उत्कृष्ट स्थिति अनन्तर-अनन्तर की जघन्य
स्थिति है।।34।।
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