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चतुर्थ अध्याय
कायप्रवीचारा आ ऐशानात्।।7। सूत्रार्थ - ऐशान तक के देव कायप्रवीचार अर्थात् शरीर से विषय-सुख भोगने ___ वाले होते हैं।।7।।
शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनः प्रवीचाराः।।४।। सूत्रार्थ-शेष देव स्पर्श, रूप, शब्द और मन से विषय-सुख भोगने वाले होते हैं।।8।।
परेऽप्रवीचाराः।। सूत्रार्थ - बाकी के सब देव विषय-सुख से रहित होते हैं।।।।
प्रवीचार (मैथुन-काम सेवन) कैसे । काया स्पर्श रूप शब्द मनालाप्रवीचार प्रवीचार
मनुष्य के शरीर के सुन्दर मधुर एक- विषय
समान स्पर्श करने शृंगार, दूसरे का वेदना का स्वरूप | संक्लेश मात्र से आकार, मन में अभाव | पूर्वक शरीर
संकल्प | के द्वारा
मात्र
HESTERNMEANISHMIRIES
TEYSERENESASRCISE
विलास, चतुर,
कोमल
वचन.
मनोज्ञ
आभूषण
करने से
वेश रूप, की
लावण्य ध्वनि के देखने सुनने
मात्र से से कौन- * भवनवासी तीसरा, पाँचवें से नौवें से तेरहवें से कल्पातीत कौन से * व्यंतर चौथा आठवाँ बारहवाँ सोलहवाँ स्वर्ग में * ज्योतिषी स्वर्ग स्वर्ग स्वर्ग स्वर्ग
* पहला, (3-4) |(5-8) (9-12) (13-16) दूसरा स्वर्ग (1-2)
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