SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 73 चतुर्थ अध्याय कायप्रवीचारा आ ऐशानात्।।7। सूत्रार्थ - ऐशान तक के देव कायप्रवीचार अर्थात् शरीर से विषय-सुख भोगने ___ वाले होते हैं।।7।। शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनः प्रवीचाराः।।४।। सूत्रार्थ-शेष देव स्पर्श, रूप, शब्द और मन से विषय-सुख भोगने वाले होते हैं।।8।। परेऽप्रवीचाराः।। सूत्रार्थ - बाकी के सब देव विषय-सुख से रहित होते हैं।।।। प्रवीचार (मैथुन-काम सेवन) कैसे । काया स्पर्श रूप शब्द मनालाप्रवीचार प्रवीचार मनुष्य के शरीर के सुन्दर मधुर एक- विषय समान स्पर्श करने शृंगार, दूसरे का वेदना का स्वरूप | संक्लेश मात्र से आकार, मन में अभाव | पूर्वक शरीर संकल्प | के द्वारा मात्र HESTERNMEANISHMIRIES TEYSERENESASRCISE विलास, चतुर, कोमल वचन. मनोज्ञ आभूषण करने से वेश रूप, की लावण्य ध्वनि के देखने सुनने मात्र से से कौन- * भवनवासी तीसरा, पाँचवें से नौवें से तेरहवें से कल्पातीत कौन से * व्यंतर चौथा आठवाँ बारहवाँ सोलहवाँ स्वर्ग में * ज्योतिषी स्वर्ग स्वर्ग स्वर्ग स्वर्ग * पहला, (3-4) |(5-8) (9-12) (13-16) दूसरा स्वर्ग (1-2) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy