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________________ तृतीय अध्याय तद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः | | 25 | सूत्रार्थ - विदेह पर्यन्त पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार भरत क्षेत्र के विस्तार से दूना- दूना है ||25|| 58 उत्तरा दक्षिणतुल्याः || 26 || सूत्रार्थ - उत्तर के क्षेत्र और पर्वतों का विस्तार दक्षिण के क्षेत्र और पर्वतों के समान है।। 26 ।। क्रमांक 27 से 31 तक के लिए आगे देखें ! सूत्र भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ||32।। सूत्रार्थ - भरतक्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप का एक सौ नब्बेवाँ भाग है ||32|| क्षेत्रों का विस्तार भरत क्षेत्र हिमवन पर्वत हैमवत क्षेत्र आगे-आगे के महा हिमवन पर्वत पर्वत और क्षेत्र हरि क्षेत्र निषेध पर्वत विदेह क्षेत्र नील पर्वत रम्यक क्षेत्र रुक्मि पर्वत हैरण्यवत क्षेत्र शिखरी पर्वत ऐरावत क्षेत्र 5266 / 19 योजन जम्बूद्वीप का 190 वाँ भाग 2/190, Jain Education International काना- 2 विस्तार विदेह तक विदेह से आगे आगे के पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार आधा-आधा है। "" "" 33 "" 33 23 4/190, 8/190, 16/190 2/190 64/190 For Personal & Private Use Only 32 उत्तर की रचना दक्षिण जैसी है। 33 33 www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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