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________________ तृतीय अध्याय 59 भरतैराक्तयोर्वृद्धिहासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम्।।27।। सूत्रार्थ - भरत और ऐरावत क्षेत्रों में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के छह समयों की अपेक्षा वृद्धि और हास होता रहता है।।27।। काल चक्र परिवर्तन 10 कोड़ा | उत्सर्पिणी जीवों के शरीर की ऊँचाई कोड़ी सागर आयु आदि की क्रमश: वृद्धि 10 कोड़ा | अवसर्पिणी । | जीवों के शरीर की ऊँचाई कोड़ी सागर आयु आदि की क्रमश: हानि 20 कोड़ा = 1 कल्प काल | कोड़ी सागर एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षक दैवकुरवकाः।।29॥ : सूत्रार्थ - हैमवत, हरिवर्ष और देवकुरु के मनुष्यों की स्थिति क्रम से एक, दो .. और तीन पल्योपम प्रमाण है।।29।। तथोत्तराः।।30॥ सूत्रार्थ - दक्षिण के समान उत्तर में (स्थिति) है।।30।। .. विदेहेषु संख्येयकालाः।।31।। सूत्रार्थ - विदेहों में संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य हैं।।31।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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