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________________ 55 ___तृतीय अध्याय पद्ममहापद्मतिगिञ्छकेशरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हदास्तेषामुपरि।।14।। सूत्रार्थ - इन पर्वतों के ऊपर क्रम से पद्म, महापद्म, तिगिंछ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक - ये तालाब हैं।।14।। प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्धविष्कम्भो हृदः।।15।। सूत्रार्थ - पहला तालाब एक हजार योजन लम्बा और इससे आधा चौड़ा है।।15।। दशयोजनावगाहः।।16॥ सूत्रार्थ - तथा दस योजन गहरा है।।16।। तन्मध्ये योजनं पुष्करम्।।17। सूत्रार्थ - इसके बीच में एक योजन का कमल है।।17।। तद्विगुणद्विगुणा हृदाः पुष्कराणि च।।18।। सूत्रार्थ - आगे के तालाब और कमल दूने-दूने हैं।।18।। तन्निवासिन्यो देव्यः श्रीहीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः ससामानिकपरिषत्काः।।1।। ..सूत्रार्थ - इनमें श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी - ये देवियाँ सामानिक और परिषद् देवों के साथ निवास करती हैं तथा इनकी आयु एक पल्योपम है।।19।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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