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________________ 54 . तृतीय अध्याय तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरुक्मि शिखरिणो वर्षधरपर्वताः।।11।। सूत्रार्थ - उन क्षेत्रों को विभाजित करने वाले और पूर्व-पश्चिम लम्बे ऐसे हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी - ये छह वर्षधर पर्वत हैं।।11।। हेमार्जुनतपनीयवैडूर्य्यरजतहेममयाः।।12।।.. सूत्रार्थ - ये छहों पर्वत क्रम से सोना, चाँदी, तपाया हुआ सोना, वैडूर्यमणि, चाँदी और सोना इनके समान रंगवाले हैं।।12।। मणिविचित्रपार्खा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः।।13।। सूत्रार्थ - इनके पार्श्व मणियों से चित्र-विचित्र हैं तथा वे ऊपर, मध्य और मूल में समान विस्तारवाले हैं।।13।। पर्वत/कुलाचल नाम रंग हिमवन | सोना लम्बाई पूर्व से पश्चिम आकार । चौड़ाई । विशेषः । दीवार ऊपर, आजू-बाजू की भाँति | में विचित्र मूल में । | मणियों से एक जैसा | जड़ा हुआ नीचेव महा हिमवन चाँदी समुद्र निषध तक नील तपाया हुआ सोना वैडूर्य नील मणि रुक्मि । शिखरी | सोना चाँदी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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